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उनीसवाँ परिच्छेद 'भंगवानने कहा :-"अब तो तुम्हारी यह वन्दना द्रव्य वन्दना हो जायगी और फल तो भाव वन्दनासे ही प्राप्त होता है।"
यह सुनकर कृष्णने वैसा करनेका विचार छोड़ दिया। इसके बाद उन्होंने वीरकी वन्दनाका फल. पूछा । इसपर भगवानने कहा :-"उसे केवल कायक्लेशका फल हुआ है, क्योंकि उसने तो तुम्हारा ही अनुकरण किया है।" __ इसके बाद कृष्णराज भगवानको वन्दन कर, इन्हीं सब बातों पर विचार करते हुए अपने राज-मन्दिरमें लौट आये।
एकवार नेमिनाथ भगवानने श्रोताओंको धर्मोपदेश देते हुए अष्टमी और चतुर्दशीआदि पर्वदिनोंका माहात्म्य वर्णन किया। उसे सुन, कृष्णने हाथ जोड़कर प्रभुसे. पूछा :- "हे स्वामिन् ! राज-काजमें व्यस्त रहनेके कारण मैं समस्त पर्व दिनोंकी आराधना नहीं कर सकता, इसलिये मुझे एक ऐसा दिन वतलाइये, जो वर्ष भर में सर्वोत्तम हो"