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चौदहat परिच्छेद
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धूल भर गयी । भानुंकने किसी तरह खड़े हो, आँखे मलकर देखा, तो वहाँ न उस अश्वका ही पता था न प्रद्युम्नका ही । वह लज्जित हो, अपना शिर धुनाता हुआ अपने वासस्थानको चला गया ।
इसके बाद प्रद्युम्नने एक विदूपकका रूप धारण किया और एक भेड़े पर सवार हो, नगर निवासियोंको हँसाते हुए वे वसुदेवकी राजसभा में पहुँचे । उनका विचित्र वेश देखकर वहाँ जितने मनुष्य थे, वे सब ठठाकर हँस पड़े प्रद्युम्नने अपने विविध कार्योंद्वारा उन लोगोंको और भी हँसाया । जब सब लोग हॅसते हँसते थक गये, प्रद्युम्नने अपना वह रूप पलटकर एक वेदपाठी ब्राह्मणका वेश धारण कर लिया ।
तव
इसी वेशमें प्रद्युम्न बहुत देर तक नगर में विचरण करते रहे । अन्तमें सत्यभामाकी एक कुब्जा दासीसे उनकी भेट हो गयी। उन्होंने अपनी विद्याके बलसे उसका कुबड़ापन दूर कर दिया। इससे कुब्जाको बड़ा ही आनन्द हुआ और वह भक्तिपूर्वक उनके चरणोंपर गिर कर कहने लगी :"हे भगवन् ! आप कौन हैं और कहाँ जा रहे हैं ?"