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चौदहवाँ परिच्छेद
यह बात तय हो जाने पर सागरदत्तने सुकुमारीका के साथ सागरका व्याह कर दिया। व्याहके बाद सोहागरात मनानेके लिये वे दोनों एक सुन्दर कमरे में भेजे गये। वहाँ सागरने ज्योंही अपनी नव विवाहिता पलीसे स्पर्श किया, त्योंही उसके पूर्व कर्मके कारण सागरके अंग-प्रत्यङ्गमें ऐसी ज्वाला उत्पन्न हुई, कि उसके लिये वहाँ ठहरना कठिन होगया, परन्तु किसी तरह कुछ देर तक वह वहाँ रुका रहा और ज्योंही सुकुमारीकाको निद्रा आयी, त्योंही वह वहाँसे भाग खड़ा हुआ। । ___ कुछ देर बाद जब सुकुमारीकाकी निद्रा भंग हुई, तुव उसने वहॉ पतिदेवको न पाया। इससे वह दुःखित होकर विलाप करने लगी। सुवह सुभद्राने एक दासी द्वारा उन दोनोंके लिये दन्तधावनकी सामग्री भेजी। सुकुमारीका उस समय भी रो रही थी और उसके पतिका कहीं पता न था। उसने तुरन्त सुभद्रासे जाकर यह हाल कहा। सुभद्राने सागरदत्तसे कहा और सागरदत्तने जिनदत्तको उलाहना दिया। इससे जिनदत्तने अपने पुत्रको एकान्तमें बुलाकर कहा :-"हे पुत्र !