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दूसरा परिच्छेद चित्रगतिसे कहा:- "हे महापुरुष ! आपन अकारण मुझपर जो उपकार किया है, वही आएके उत्तम कलका परिचय देनेके लिये पर्याप्त है, फिर भी यदि आप अपने नाम और कुलका पूरा परिचय दंगे, तो बड़ी कृपा होगी।"
चित्रगतिका मन्त्रीपुत्र भी चित्रगतिके साधही था। उसने चित्रगतिके वॅशादिकका वर्णन कर सब लोगोंको उसका नामादिक बतलाया। चित्रगतिका प्रकृत परिचय पाकर सुमित्रको बहुतही आनन्द हुआ। उसने कहा :"हे अकारण वन्धो ! मेरी विमाताने आज गुझे विप देकर, मेरा अपकार नहीं, बल्कि उपकार किया है। यदि वह विष न देती, तो मुझे आपके दर्शन कैसे होते ? आपने मुझे न केवल जीवन-दानही दिया है, बल्कि मुझे प्रत्याख्यान और नमस्कार हीनको दुर्गतिमें पड़नेसे भी बचाया है। बतलाइये, मैं इस उपकारका बदला आपको किस प्रकार दे सकता हूँ ?"
चित्रगतिने कहा :-"मित्र ! मैंने जो कुछ किया है, वह बदलेकी इच्छासे नहीं, बल्कि अपना कर्त्तव्य