________________
ग्यारहवाँ परिच्छेद
VANT
हाल कह सुनाया। राजाने उनका फल जाननेके लिये एक क्रोष्टु कि नामक स्वम पाठक को बुला भेजा । उसी समय अचानक एक मुनिराज भी वहाँ आ गये। राजाने उन दोनोंका सत्कार कर उनसे उस स्वमका फल पूछा। इसपर मुनिराजने कहा :-'हे राजन् ! यह स्वम बहुत ही उत्तम है। तुम्हारी रानी एक ऐसे पुत्रको जन्म देगी, जो तीनों लोकका स्वामी तीर्थकर होगा।" __ यह स्वम-फल सुनकर राजा और रानी बहुत ही प्रसन्न हुए। रानी उस दिनसे रतकी भाँति यतपूर्वक उस गर्भकी रक्षा करने लगीं। उस गर्भके प्रभावसे रानीके अंगप्रत्यङ्गका लावण्य और सौभाग्य बढ़ गया। गर्भकाल पूर्ण होनेपर शिवादेवीने श्रावण शुक्ल पञ्चमीके रात्रिके समय चित्रा नक्षत्रके साथ चन्द्रमाका योग होने पर एक सुन्दर पुत्रको जन्म दिया। उसके शरीरकी कान्ति मरकत रनके समान और देह शंख लाञ्छनसे सुशोभित हो रही थी। राजा और रानीके नेत्र इस पुत्र-रत्नको देखते ही मानो शीतलं और तृप्त हो गये।
इस पुत्रका जन्म होते ही छप्पन दिशिकुमारिकाओंने