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दसवाँ परिच्छेद की, तो दासीने उससे सारा हाल वतला दिया। बालकको देखकर सेठका पितृ-हृदय द्रवित हो उठा, इसलिये उसने दासीके हाथसे उसे ले लिया। इसके बाद गुप्तरूपसे दूसरे मकानमें ले जाकर उसने उसे बड़ा किया और उसका नाम गंगदत्त रक्खा ।
ललितको अपने इस भाईका हाल मालूम था, इसलिये वह भी कभी-कभी उस मकानमें जाकर उसे खेलाया करता था । एकदिन वसन्तोत्सबके समय उसने अपने पितासे कहा :-'हे पिताजी ! वसन्तोत्सवक दिन गंगदत्त भी हमलोगोंके साथ भोजन करे तो वड़ाही अच्छा हो।" ___ पिताने कहा :-हॉ अच्छा तो है, किन्तु तुम्हारी माता उसे देख लेगी तो बड़ा ही अनर्थ कर डालेगी।"
ललितने कहा :-'अच्छा, मैं ऐसा प्रवन्ध करूँगा, जिससे माताजी उसे देख न सकेंगी।"
पुत्रकी यह बात सुनकर पिताने उसे इस कार्यके लिये अनुमति दे दी। भोजनका समय होने पर ललितने गंगदत्तको एक पर्देके पीछे बैठा दिया और खुद. पिता