________________
-
३९६ .
नेमिनाथ चरित्र बाद उन्होंने एक राज-भवनमें उनको ठहरा कर भोजनादिक द्वारा उनका आतिथ्य सत्कार किया। ___ राजा दधिपर्णको भीमरथके इस स्वागत सत्कारसे पूर्ण सन्तोष हुआ, परन्तु उनकी समझमें यह न आता था, कि जिस स्वयंवरके लिये वे इतनी दूरसे यहाँ आये थे, उसकी कोई तैयारी नगरमें नहीं दिखायी देती थी। वे कहने लगे, शायद स्वयंवरकी तिथि लिखने या पढ़ने में भूल हुई होगी। इतने ही में राजा भीमरथ उनके पास आये। दधिपर्णने सोचा कि अब इनसे इस विषयमें पूछ ताछ करनी चाहिये। किन्तु परम चतुर राजा भीमरथ उनका मनोभाव पहले ही समझ गये, इसलिये उन्होंने उनके कुछ कहने सुननेके पहले ही कहा :-"राजन् ! आपको जिस कार्यके लिये बुलाया है, उसकी बातचीत हमलोग फिर किसी समय एकान्तमें करेंगे। किन्तु इस समय तो मैं एक दूसरे ही कार्यसे आपके पास आया हूँ। मैंने सुना है कि आपके साथ जो कुबड़ा आया है वह सूर्यपाकी है। मैं उसकी इस विद्याका चमत्कार देखना चाहता हूँ। अन्तःपुरमें रानी आदि भी इसके लिये परम