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आठवाँ परिच्छेद
लगा । चन्द्रयशाने दमयन्तीको गाढ़ आलिङ्गन कर उसे गलेसे लगा लिया | रानीका यह माताके समान प्रेम देखकर दमयन्तीके नेत्रोंसे भी अश्रुधारा वह निकली। वह दुःख और प्रेमके कारण रानीके पैरों पर गिर पड़ी ।
रानीने उसे उठाकर मधुर वचनों द्वारा सान्त्वना
दी। जब वह शान्त हुई, तब रानीने उसका परिचय पूछा । दमयन्तीने पूर्वकी भाँति अपना असली परिचय न देकर जो बातें सार्थवाहकसे कही थीं, वही बातें रानी से भी कह दीं। उन्हें सुनकर रानीने समवेदना प्रकट करते हुए कहा :-- “ है कल्याणी ! तुम्हें यहॉपर किसी प्रकारका कष्ट न होने पायगा । जिस प्रकार मेरी पुत्री चन्द्रवती रहती है, उसी प्रकार तुम भी रहो और आनन्द करो ।"
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दमयन्ती ऐश्वर्य या सुखकी भूखी तो थी नहीं,किन्तु उसे किसी निरापद स्थान या आश्रयकी आवश्यकता जरूर थी । इसलिये रानीके उपरोक्त वचन सुनकर उसे परम सन्तोष हुआ और वह बड़ी सादगीके साथ वहाँ रहती हुई अपने दिन व्यतीत करने लगी ।