________________
१२
नेमिनाय-परित्र विम्बका पूजन करती। इसके साथ ही वह तरह-तरहके व्रत, उपवास और तपका भी अनुष्ठान करती। और जब वे पूर्ण होते तव परम श्राविका की भाँति बीज रहित प्रासुक फलोद्वारा पारणकर उनकी पूर्णाहुति करती। । - इस प्रकार दमयन्तीके दिन जपतपमें व्यतीत हो रहे थे। उधर दो-चार दिनके बाद सार्थवाहकको दमयन्तीका स्मरण आया। उसने जब देखा, कि उसका कहीं पता नहीं है, तब उसे बड़ीही चिन्ता हुई और वह वापस लौटकर दमयन्तीकी खोज करने लगा। अन्तमें उस गुफाके अन्दर दमयन्तीसे उसकी भेट हो गयी। जिस समय वह वहाँ पहुँचा उस समय दमयन्ती जिन बिम्बका पूजन कर रही थी। उसे सकुशल देखकर सार्थवाहककी चिन्ता दूर हो गयी और वह उसे प्रणाम कर विनयपूर्वक उसी जगह बैठ गया। . . . . . .
प्रभु पूजा समाप्त होनेपर दमयन्तीने सार्थवाहकका स्वागत किया और बड़े प्रेमसे उसका कुशल समाचार पूछा। इसी समय उनका शब्द सुनकर कुछ तापस भी उस गुफामें जा पहुंचे और वहीं बैठकर उनकी बातें सुनने