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नेमिनाथ चरित्र पड़ गये। दूसरे ही क्षण उनके हृदयमें वह भयकर विचार उत्पन्न हुआ, जिसके कारण उन दोनोंका वह रहा-सहा सुख भी नष्ट हो गया, जो एक दूसरेके साथ रहनेसे उन्हें उस जंगलमें भी प्राप्त होता था। वे कहने लगे:-"यदि अपने हृदयको पत्थर बनाकर मैं दमयन्तीको यहीं छोड़ दूं, तो फिर मैं जहाँ चाहूँ वहाँ जा सकता हूँ। दमयन्ती परम सती है। अपने सतीत्वके प्रभावसे सर्वत्र उसकी रक्षा होगी। किसीकी सामर्थ्य नहीं जो उसे किसी प्रकारकी हानि पहुंचा सके। बस, यही विचार उत्तम है। इसीको अव कार्य रूपमें परिणत करना चाहिये ।" .
इस प्रकार नलने कुछ ही क्षणोंमें दमयन्तीको, उस दमयन्ती को जो उन्हें प्राणसे भी अधिक प्रिय थी, हिंसक प्राणियोंसे भरे हुए जालमें सोती हुई अवस्थामें छोड़ जाना स्थिर कर लिया। उन्होंने दमयन्तीकी शैय्या पर अपना जो वस्त्र बिछा दिया था, उसे छुरीसे आधा काट लिया। इसके बाद दमयन्तीके वस्त्र पर अपने रुधिर से निम्नलिखित दो श्लोक लिखकर वे आँसू बहाते हुए चुपचाप वहाँसे एक तरफ चल दिये।