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नेमिनायचरित्र कहीं भी दिखायी न दिया। अन्तमें उन्होंने स्वयंवर करना स्थिर किया। उनके आदेशसे शीघ्र ही एक सुशोभित और विशाल सभामण्डप तैयार किया गया और स्वयंवर में भाग लेने के लिये भिन्न-भिन्न देशके राजाओंको निमन्त्रण-पत्र भी दे दिये गये।
एक दिन कनकवती अपने कमरेमें आरामसे बैठी हुई थी। इतने ही में कहींसे एक राजहँस आकर उसकी खिड़कीमें बैठ गया । उसका वर्ण कपूर के समान उज्ज्वल और चंचु, चरण तथा लोचन अशोक वृक्षक नूतन पत्रोंकी भांति अरुण थे। विधाताने मानो त परमाणुओंका सार संग्रह कर उसके पंखोकी रचना की थी। उसके कंठमें सोने धुंवर बंछ हुए और उसका स्वर बहुत ही मधुर था। वह जिस समय ठुमक ठुमक कर चलता था, उस समय ऐसा मालूम होता था, मानो वह नृत्य कर रहा है।
राजकुमारी कनकवती इस मनोहर हॅसको देखकर अपने मनमें कहने लगी :-"मालूम होता है कि यह किसीका पलाऊ हँस हैं। यदि ऐसा न होता तो इसके