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नेमिनाथ चरित्र
तुम्हारी मृत्यु होगी। इसीसे हम लोगोंने आपको कंद किया है। अब राजाके आदेशानुसार आपको प्राणदण्ड दिया जायगा।" ___इतना कह वे लोग वसुदेवको चमड़े के थैलेमें बन्दकर एक पर्वत पर ले गये और वहाँसे उन्होंने उन्हें नीचे ढकेल दिया। किन्तु वेगवतीकी धात्रीने उन्हें बीच ही में गोंच कर उनके प्राण बचा लिये। इसके बाद वह उन्हें वेगवतीके पास ले जाने लगी। किन्तु वसुदेव तो चमड़ेके थैलेमें बन्द थे, इसलिये उन्हें यह न मालूम हो सका कि मुझे कौन लिये जा रहा है। वे अपने मनमें कहने लगे कि शायद चारुदत्तकी तरह मुझे भी भारण्डने पकड़ लिया है और वही मुझे कहीं लिये जा रहा है।' , थोड़ीही देरमें वह धात्री पर्वत पर जा पहुंची और वहाँपर उसने वसुदेवको जमीन पर रख दिया। इतने ही में वसुदेवने थैलेके एक छिद्रसे देखा तो उन्हें वेगवतीके पैर दिखायी दिये । वह छुरीसे थैलेको काट रही थी। थैला कंटते ही वसुदेव उसमेंसे बाहर निकल आये और वेगवती :-हे नाथ ! हे नाथ ! कहती हुई लताकी.