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छठा परिच्छेद यह सब वृत्तान्त वसुदेवको सुनाकर सोमदत्तके. मन्त्रीने उनसे कहा :--"हे वसुदेव कुमार! यह सब बातें मैंने महाराजसे बतला दी थी और उस दिनसे वे भी शान्त हो गये थे। आज राजकुमारीको आपने हाथी. से बचाया है, इसलिये राजकुमारी और महाराज आदि आपको पहचान गये हैं। उन्हींके आदेशसे मैं आपको वुलाने आया हूँ। कृपा कर आप मेरे साथ चलिये और राजकन्याका पाणिग्रहण कर उसका जीवन सार्थक कीजिये।" मन्त्रीकी यह प्रार्थना सुनकर, वसुदेवकुमार उसके साथ राजा सोमदत्तके पास गये और वहॉपर राजकुमारीका पाणिग्रहण कर वे उसका आतिथ्य ग्रहण करने लगे।
एकदिन रात्रिके समय वसुदेवने देखा कि शैय्या पर उनकी पत्नीका पता नहीं है। इससे वे बहुतही दुःखित हो गये और उसकी खोज करने लगे। तीसरे दिन एक उपवनमें उसे देखा तो उन्होंने कहा :-"प्रिये ! मुझसे. ऐसा कौनसा अपराध हुआ है, जिसके कारण तुम इस. तरह रुष्ट होकर मुझे परेशान कर रही हो।"