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________________ १५४ नेमिनाथ चरित्र पकड़कर उसमें लटक गया। इस प्रकार मैं बाहर तो आया, परन्तु बाहर निकलते ही मैं मूच्छित होकर जमीन पर गिर पड़ा। कुछ देर के बाद जब मुझे होश आया, तो मैंने कालके समान एक जंगली भैंसेको अपनी ओर आते देखा । उसकी लाल-लाल आँखें, बड़े-बड़े सींग और विकराल रूप देखकर मैं बेतरह डर गया और एक शिला पर चढ़ बैठा। वह भैंसा मुझे देखकर उस शिलाके पास 'दौड़ आया और बड़े वेग से उसे ठोकरें मारने लगा ।' यदि मैं शिला पर न चढ़ गया होता और उसकी एक भी ठोकर मेरे लग जाती, तो मैं निःसन्देह वहीं ढेर हो जाता । इसी समय एक और आश्चर्यजनक घटना इसप्रकार घटित हुई कि उस शिलापर ठोकरें मारते हुए उस भैंसेका पैर पीछेसे एक अजगरने पकड़ लिया । इससे भैंसेका ध्यान मेरी ओरसे हटकर उसकी ओर चला गया। इसके बाद ज्योंही उन दोनोंमें खींचातानी होने लगी, त्योंहीं मैं उस शिलासे कूदकर एक तरफ भागा।
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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