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(२८) दिल लगाने की नहीं दुनिया कोई चीज है। फिर जरा बतला तो तू किसके तलबगारों में है ।।६ ॥. तू न आबी है न खाकी आतशी बादी नहीं ॥ , किसलिये फिर, तू कहो इनके खरीदारों में हूं। ७ ॥ चन्द दानों के लिए है कैद बन्दर की तरह ॥ . मोह का परदा हटा नाहक गिरिफतारों में है ॥८॥ अपनी नादानी से जो चलता है उल्टी चाल तू ॥ पा सजा रोता है क्यों जब तू सजावारों में है ॥ ९॥ कर मिलान अपना ज़रा जिनराज की तसवीर से। है वही नकशा तेरा जो कुछ कि अवतारों में है ।। १० ।। | भूल से है मुन्तला दुनियां के आजारों में तू ॥ तू न बीमारों में है और ना खतावारों में है ॥ ११ ॥ तूही करता तूही हरता भोगता कर्मों का तू ॥ अपने हाथों से बना तू आप बीमारों में है ।। १२ ।। है बिलाशक न्यायमत तू ज्ञानमय आनन्दमय ।। अपनी गल्ती से बना नाहक गुन्हेगारों में है ॥१३॥
चाल-सभा में मेरा तूही तो करेगा निस्तारा॥
. (चाल अलीबख्श रिवाड़ी वाले की) | दुनियां में तेरा धर्म ही करेगा निस्तारा ॥ टेक | द्रुपद सती का चीर बढ़ाया-श्रीपाल का कुष्ट हटाया।