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________________ Anu A name । - (२०) अनादि कालसे अबतक मगर क्षुधा मेरी ।। नहीं हरी है सो झूटा गुमान था मेरा ॥ सोही जान निरर्थक नेवज तेरे चर्णो के आगे चढ़ावत हूं। स्वामी तू हितकारी दुख पर हारी चों में सीस नमावत हूं। दीप से पूजा (७) तिमरका जगमें यह दीपक बिनाश करता है । अंधेरी रातमें बेशक प्रकाश करता है ।। तिमर अज्ञानको लेकिन नहीं हरा मेरे । अंधेर मोह अभी मनमें वास करता है ।। सोही जान निरर्थक दीपक तेरे चोंके आगे चढ़ावत हूं। स्वामी तू हितकारी दुख पर हारी चों में सीस नमावत हूं। धूप से पूजा (८) अगन जलाती है चंदन कपूर सुंदरको॥ हवनमें धूप सुगंधित करे है मंदिरको। मगर जलाए नहीं अबतलक करम मेरे ।। करूंगा फैर मैं क्या धूपको वसुंधरको। सोही धूप निरर्थक जानके तेरे चर्गों के आगे चढ़ावत हूं। स्वामी तू हितकारी दुख परहारी चों में सीस नमावंत हूं। फलसे पूजा (९) अनेक फल हैं अवश्य यह तो देंगे फल मुझको॥ खयाल था कि श्रीफल करे सुफल मुझको। maamsoom - - sournamme -
SR No.010425
Book TitleMurti Mandan Prakash
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages43
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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