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________________ - - न्यामत जिसकी उस परमातमासे प्रीत लागी है। उसीके दिलमें समझो ज्ञानकी बस जोत जागी है ॥६॥ - १३ - - मूर्ति स्थापना करने की ज़रूरत ॥ चाल-कहां लेजाऊं दिल दोनों जहां में इसकी मुशफिल है ॥ मुनासिब है उसी भगवंतको मस्तक नमावें हम ।। उसीके ध्यानका फोटो जरा हिर्दयमें लावें हम ॥ १॥ बिना मूरत किसीका ध्यान दिलमें हो नहीं सकता ॥ तो उसकी शान्त मुद्राकी कोई मूरत बनावें हम ॥२॥ . किया है जिसने हित उपदेश दे उपकार दुनियाका ॥ बिनयसे क्यों न उसकी मूर्तिको सर झुकावें हम ॥३॥ करें सिजदा अगर पत्थर समझकर तबतो काफर हैं। अगर रहबर समझ करके करें सिजदा तो क्या डर है ॥ ४॥ मुसलमां जाके सिजदा करते हैं मकेमें ईश्वर को ॥ बनी है स्लीबकी मूरत जहां ईसाका मंदिर है ॥५॥ आर्य मंदिरों में भी शबीः दयानंद स्वामी की । रखी समझा बिनय करनेकी यह तदबीर बेहतर है ॥ ६॥ जुदागाना तरीके हैं बिनय करनेके दुनियामें ।। कहीं कनें कहीं फोटो कहीं भगवतकी मूरत है ॥ ७॥ || कहीं टोपी उतारे हैं कहीं जूता उतारे हैं। - - - - - - -
SR No.010425
Book TitleMurti Mandan Prakash
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages43
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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