________________
७८०
मोक्षशास्त्र
४~मोक्षमार्ग दो नहीं मोक्षमार्ग तो कहीं दो नही है किन्तु मोक्षमार्गका निरूपण दो तरह से है । जहाँ सच्चे मोक्षमार्गको मोक्षमार्ग निरूपण किया है वह निश्चय ( यथार्थ ) मोक्षमार्ग है तथा जो मोक्षमार्ग तो नहीं है किन्तु मोक्षमार्गमें निमित्त है अथवा साथमें होता है उसे उपचारसे मोक्षमार्ग कहा जाता है, लेकिन वह सच्चा मोक्षमार्ग नही है।
निश्चय मोक्षमार्गका स्वरूप श्रद्धानाधिगमोपेक्षा शुद्धस्य स्वात्मनो हि या । सम्यक्त्वज्ञानवृत्तात्मा मोक्षमार्गः स निश्चयः ॥३॥
अर्थ-निज शुद्धात्माकी अभेदरूपसे श्रद्धा करना, अभेदरूपसे ही ज्ञान करना तथा अभेदरूपसे ही उसमें लीन होना-इसप्रकार जो सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप आत्मा है सो निश्चयमोक्षमार्ग है।
__व्यवहारमोक्षमार्गका स्वरूप श्रद्धानाधिगमोपेक्षा याः पुनः स्युः परात्मना ।
सम्यक्त्वज्ञानवृत्वात्मा स मार्गो व्यवहारतः॥शा
अर्थ-आत्मामें जो सम्यग्दर्शन-सम्यग्ज्ञान-तथा सम्यक्चारित्र भेदकी मुस्यतासे प्रगट हो रहे हैं उस सम्यक्दर्शन-सम्यग्ज्ञान-सम्यक् चारियरूप रत्नत्रयको व्यवहार मार्ग समझना चाहिये ।
व्यवहारी मुनिका स्वरूप श्रद्दधानः परद्रव्यं युध्यमानस्तदेव हि ।
तदेवोपेक्षमाणश्च व्यवहारी स्मृतो मुनिः ॥शा अर्थ-जो परद्रव्यको ( सात तत्त्वोंकी भेदरूपसे ) श्रद्धा करता है उसी तरह भेदरूपसे जानता है और उसी तरह भेदरूपसे उपेक्षा करता है उस मुनिको व्यवहारी मुनि कहते हैं।