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मोक्षशास्त्र उत्तर-सिद्ध जीवोंके शरीर नहीं है और जीव सूक्ष्म ( अरूपी) है, इसीलिये एक स्थान पर अनंत जीव एक साथ रह सकते हैं। जैसे एक ही स्थान में अनेक दीपकोंका प्रकाश रह सकता है उसी तरह अनंत सिद्ध जीव एक साथ रह सकते है । प्रकाश तो पुद्गल है; पुद्गल द्रव्य भी इस तरह रह सकता है तो फिर अनंत शुद्ध जीवोंके एक क्षेत्रमें साथ रहने में कोई बाधा नहीं।
११. सिद्ध जीवों के आकार है ? कुछ लोग ऐसा मानते है कि जीव अरूपी है इसीलिये उसके प्राकार नहीं होता, यह मान्यता मिथ्या है। प्रत्येक पदार्थ में प्रदेशत्व नामका गुण है, इसीलिये वस्तुका कोई न कोई आकार अवश्य होता है। ऐसी कोई चीज नहीं हो सकती जिसका आकार न हो । जो पदार्थ है उसका अपना आकार होता है । जीव अरूपी-अमूर्तिक है, अमूर्तिक वस्तुके भी अमूर्तिक आकार होता है । जीव जिस शरीरको छोड़कर मुक्त होता है उस शरीरके आकारसे कुछ न्यून आकार मुक्त दशामें भी जीवके होता है ।
प्रश्न-यदि आत्माके आकार हो तो उसे निराकार क्यों कहते हैं ?
उत्तर-आकार दो तरहका होता है-एक तो लम्बाई चौड़ाई मोटाईरूप आकार और दूसरा मूर्तिकरूप आकार । मूर्तिकतारूप आकार एक पुद्गल द्रव्यमें ही होता है अन्य किसी द्रव्यमें नहीं होता। इसीलिये जब आकार का अर्थ मूर्तिकता किया जावे तब पुद्गल के अतिरिक्त सर्व द्रव्योंको निराकार कहते है। इस तरह जीवमे पुद्गलका मूर्तिक आकार न होने की अपेक्षा से जीवको निराकार कहा जाता है। परन्तु स्व क्षेत्र की लंबाई चौड़ाई मोटाई को अपेक्षासे समस्त द्रव्य आकारवान हैं । जब इस सद्भावसे प्राकारका संबन्ध माना जाय तो आकार का अर्थ लंबाईचौड़ाई मोटाई ही होता है । आत्माके स्व का आकार है, इसीलिये वह साकार है।
संसारदशामें जीव की योग्यता के कारण उसके प्राकारकी पर्याय