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________________ अध्याय ६ सूत्र २१-२२ ७१३॥ नोट-आभ्यंतर तपका छट्ठा मेद ध्यान है उसके भेदोंका वर्णन २८ वें सूत्रमे किया जायगा। ___ अब सम्यक् प्रायश्चितके नव भेद बतलाते हैं। आलोचनाप्रतिक्रमणतदुभयविवेकव्युत्सर्गतपश्छेद परिहारोपस्थापनाः ॥ २२॥ अर्थ-[ आलोचना प्रतिक्रमण तदुभय विवेक व्युत्सर्ग तपश्छेदपरिहारोपस्थापनाः ] पालोचना, प्रतिक्रमण, तदुभय, विवेक व्युत्सर्ग, तप, छेद, परिहार, उपस्थापना ये प्रायश्चित तपके नव भेद हैं। टीका १-सूत्रमे आये हुये शब्दोकी व्याख्या करते हैं । प्रायश्चिच-प्रायः अपराध, चित्त-शुद्धि; अर्थात् अपराधकी शुद्धि करना सो प्रायश्चित्त है। (१) आलोचना-प्रमादसे लगे हुये दोषोंको गुरुके पास जाकर निष्कपट रीतिसे कहना सो आलोचना है। (२) प्रतिक्रमण-अपने किये हुए अपराध मिथ्या होवे-ऐसी भावना करना सो प्रतिक्रमण है। (३) तदुभय-वे दोनों अर्थात् आलोचना और प्रतिक्रमण दोनों करना सो तदुभय है। (४) विवेक-पाहार-पानीका नियमित समयतक त्याग करना। (५) व्युत्सर्ग-कायोत्सर्ग करनेको व्युत्सर्ग कहते हैं । (६) तप-उपवासादि करना सो तप है। (७) छेद-एक दिन, पन्द्रह दिन, एक मास आदि समय पर्यन्त दीक्षाका छेद करना सो छेद कहलाता है। (८) परिहार-एक दिन, एक पक्ष, एक मास आदि नियमित
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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