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________________ ६६६ अध्याय ६ सूत्र १७ ६६६ इन तीनमेंसे एक समयमें एक ही होती है; इसतरह इन तीन परीषहोके कम करनेसे बाकोको उन्नीस परीषह हो सकती हैं। २-प्रश्न-प्रज्ञा और अज्ञान ये दोनों भी एक साथ नही हो सकते, इसलिये एक परीषह इन सबमेंसे कम करना चाहिये । उत्तर-प्रज्ञा और अज्ञान इन दोनोके साथ रहनेमे कोई बाधा नही है एक ही कालमे एक जीवके श्रुतज्ञानादिकी अपेक्षासे प्रज्ञा और अवधिज्ञानादिकी अपेक्षासे अज्ञान ये दोनो साथ रह सकते हैं। ३-प्रश्न-औदारिक शरीरकी स्थिति कवलाहार (अन्न पानी) के बिना देशोनकोटी पूर्व ( कुछ कम एक करोड पूर्व ) कैसे रहती है ? उत्तर-आहारके ६ भेद हैं-१ नोकर्म आहार, २ कर्माहार, ३ कवलाहार, ४ लेपाहार, ५ ओजाहार, और ६ मनसाहार । ये छह प्रकार यथायोग्य देहकी स्थितिके कारण हैं । जैसे (१) केवलीके नोकर्म आहार बताया है। उनके लाभान्तराय कर्मके क्षयसे अनन्त लाभ प्रगट हुआ है, अतः उनके शरीरके साथ अपूर्व असाधारण पुद्गलोका प्रतिसमय सम्बन्ध होता है, यह नोकर्म-केवलीके देहकी स्थितिका कारण है, दूसरा नही, इसी कारण केवलीके नोकर्मका आहार कहा है। (२) नारकियोके नरकायु नाम कर्मका उदय है वह उनके देहकी स्थितिका कारण है इसलिये उनके कर्माहार कहा जाता है। (३) मनुष्यो और तिर्यंचोके कवलाहार प्रसिद्ध है। (४) वृक्ष जातिके लेपाहार है (५) पक्षीके अण्डेके ओजाहार है । शुक नामकी धातुकी उपधातुको अोज कहते है । जो अण्डोंको पक्षी (-पंखी ) सेवे उसे ओजाहार नही समझना । (६) देव मनसे तृप्त होते हैं, उनके मनसाहार कहा जाता होता है । यह छह प्रकारका आहार देहकी स्थितिका कारण है, इस सम्बन्धी गाथा निम्नप्रकार है: णोकम्मकम्महारोकवलाहारो य लेप्पाहारो य । . उञ्जमणोविय कमसो आहारा छन्त्रिहो भणिमओ ।।
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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