SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 768
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६८८ मोक्षशास्त्र दशमेंसे बारहवें गुणस्थान तक की परीषहें सूक्ष्मसांपरायछद्मस्थवीतरागयोश्चतुर्दश ॥१०॥ अर्थ-[ सूक्ष्मसापरायछद्मस्थवीतरागयोः ] सूक्ष्मसांपराय वाले जीवोंके और छद्मस्थ वीतरागोंके [ चतुर्दश ] १४ परीषह होती हैं । टीका मोह और योगके निमित्तसे होनेवाले आत्म परिणामोंकी तारतम्यताको गुणस्थान कहते हैं, वे चौदह हैं। सूक्ष्मसांपराय यह दसमां गुणस्थान है और छद्मस्थ वीतरागता ग्यारहवे तथा बारहवें गुणस्थानमें होती है। इन तीन गुणस्थानों अर्थात् दसमें, ग्यारहवे और बारहवें गुणस्थानमें चौदह परीषह होती है, वे इस प्रकार हैं: १ क्षुधा, २ तृषा, ३ शीत, ४ उष्ण, ५ दशमशक, ६ चर्या, ७ शय्या, ८ वध, ६ अलाभ, १० रोग, ११ तृणस्पर्श, १२ मल, १३ प्रज्ञा और १४ अज्ञान । इनके अतिरिक्त १ नग्नता, २ संयममे अप्रीति (अरति) ३-खी अवलोकन-स्पर्श, ४~-आसन (निषद्या ) ५-दुर्वचन ( आक्रोश ) ६-याचना ७-सत्कार-पुरस्कार और ८-अदर्शन, मोहनीय कर्म जनित ये आठ परीपहे वहाँ नहीं होती। २ प्रश्न-दसमे सूक्ष्म सापराय गुणस्थानमें तो लोभ कषायका उदय है तो फिर वहां ये आठ परीपहे क्यों नही होती। उचर-सूक्ष्मसांपराय गुणस्थानमे मोहका उदय अत्यन्त सूक्ष्म हैअल्प है अर्थात् नाममात्र है, इसीलिये वहाँ उपरोक्त १४ परीषहोंका सद्भाव और वाकीकी ८ परीषहोंका अभाव कहा सो ठीक है; क्योकि इस गुणस्थानमै एक संज्वलन लोभ कपायका उदय है और वह भी बहुत थोड़ा है, कथनमात्रको है; इसलिये सूक्ष्मसांपराय और वीतराग छद्मस्थकी समानता मानकर चौदह परीपह कही है, यह नियम युक्ति युक्त है। ३ प्रश्न-ग्यारहवे और वारवें गुणस्थानमे मोहकर्मके उदयका अभाव है तथा दसमें गुणस्थानमे वह अति सूक्ष्म है, इसीलिये उन जीवोंके
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy