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मोक्षशास्त्र सदोषता या निर्दोषताकी अपेक्षासे ये भेद हैं । सम्यग्दर्शन स्वयं संवर है और यह तो शुद्ध भाव ही है, इसीलिये यह आस्रव या बन्धका कारण नही है।
संवरके कारण स गुप्तिसमितिधर्मानुप्रेक्षापराषहजयचारित्रैः ॥२॥
अर्थ-[ गुप्तिसमितिधर्मानुप्रेक्षापरीषहजयचारित्रैः ] तीन गुप्ति, पांच समिति, दश धर्म, बारह अनुप्रेक्षा, बावोस परीषहजय और पाँच चारित्र इन छह कारणोसे [ सः ] संवर होता है ।
टीका १-जिस जीवके सम्यग्दर्शन होता है उसके ही संवरके ये छह कारण होते हैं; मिथ्यादृष्टिके इन छह कारणोंमेंसे एक भी यथार्थ नहीं होता । सम्यग्दृष्टि गृहस्थके तथा साधुके ये छहों कारण यथासम्भव होते हैं (देखो पुरुषार्थ सिद्धय पाय गाथा २०३ की टीका ) संवरके इन छह कारणोका यथार्थ स्वरूप समझे बिना संवरका स्वरूप समझने में भी जीवकी भूल हुये विना नहीं रहती। इसलिये इन छह कारणोंका यथार्थ स्वरूप समझना चाहिये।।
२-गुप्तिका स्वरूप (१) कुछ लोग मन-वचन-कायकी चेष्टा दूर करने, पापका चितवन न करने, मीन धारण करने तथा गमनादि न करनेको गुप्ति मानते हैं किन्तु यह गुप्ति नहीं है। क्योंकि जीवके मनमें भक्ति आदि प्रशस्त रागादिकके अनेक प्रकारके विकल्प होते हैं और वचन-कायकी चेष्टा रोकनेका जो भाव है सो तो शुभ प्रवृत्ति है, प्रवृत्तिमें गुप्तिपना नहीं बनता । इसलिये वीतराग भाव होने पर जहाँ मन-वचन-कायकी चेष्टा नही होती वहाँ यथार्थ गुप्ति है । यथार्थरीत्या गुप्तिका एक ही प्रकार है और यह वीतराग भावरूप है। निमित्तकी अपेक्षासे गुप्तिके ३ भेद कहे हैं। मन-वचन-काय ये तो पर द्रव्य है, इसकी कोई क्रिया वन्ध या अवन्धत्वका कारण नहीं है।