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मोक्षशास्त्र
अनुमोदना है । कुपात्रको योग्य रीतिसे आहारादिकका दान देना चाहिये ।
२. प्रश्न - अज्ञानी के अपात्रको दान देते समय यदि शुभभाव हो तो उसका क्या फल है ? जो कोई यों कहते हैं कि पात्रको दान देनेका फल नरक निगोद है सो क्या यह ठीक है ?
उत्तर—प्रपात्रको दान देते समय जो शुभभाव है उसका फल नरक निगोद नही हो सकता । जो आत्माके ज्ञान और आचरणसे रहित परमार्थं शून्य हैं ऐसे अज्ञानी छद्मस्थ विपरीत गुरुके प्रति सेवा भक्तिसे, वैयावृत्य, तथा आहारादिक दान देनेकी क्रियासे जो पुण्य होता है उसका फल नीच देव और नीच मनुष्यत्व है |
[ प्रवचनसार गा० २५७; चर्चा-समाधान पृष्ठ ४८ ]
(३) आहार, औषध, अभय और ज्ञानदान ऐसे भी दानके चार भेद है । केवली भगवानके दानांतरायका सर्वथा नाश होनेसे क्षायिक दान शक्ति प्रगट हुई है । इसका मुख्य कार्य संसारके शरणागत जीवोंको अभय प्रदान करना है । इस अभयदानकी पूर्णता केवलज्ञानियोंके होती है । तथा दिव्यध्वनिके द्वारा तत्त्वोपदेश देनेसे भव्य जीवोंके ज्ञानदानकी प्राप्ति भी होती है । बाकीके दो दान रहे ( आहार और श्रोषध ) सो गृहस्थके कार्य हैं । इन दो के अलावा पहले के दो दान भी गृहस्थोके यथाशक्ति होते हैं । केवली भगवान वीतरागी है उनके दानकी इच्छा नही होती ॥३६॥
[ तत्त्वार्थसार पृ० २५७ ]
उपसंहार
१ - इस अधिकारमें पुण्यास्रवका वर्णन है, व्रत पुण्यास्रवका कारण है । अठारहवे सूत्रमें व्रतीको व्याख्या दी है । उसमे बतलाया है कि जो जीव मिथ्यात्व, माया और निदान इन तीन शल्योंसे रहित हो वही व्रती हो सकता है । ऐसी व्याख्या नही की कि 'जिसके व्रत हो सो वृती है' इसलिये यह खास ध्यान में रहे कि वूती होनेके लिये निश्चय सम्यग्दर्शन और व्रत दोनों होने चाहिये ।