________________
४८
६४ सूत्र नम्बर विषय
पत्र संख्या निमित्तनैमित्तिकके दृष्टान्त
४८३ प्रयोजनभूत
४८४ अध्याय छटा भूमिका सात तत्वोंकी सिद्धि सात तखोंका प्रयोजन
४८७ तत्वोंकी श्रद्धा कब हुई कही जाय ? १ आस्रवमें योगके मेद और उसका स्वरूप
४६० २ आस्रवका स्वरूप
४६१ योगके निमित्तसे आस्रवके भेद
४६३ पुण्याश्रव और पापावके सम्बन्धमें भूल
४६४ शुभयोग और अशुभयोगके अर्थ आस्रवमें शुभ और अशुभ भेद क्यों ?
४६५ शुभ भावोंसे भी ७ या ८ कर्म बन्धते हैं तो शुभ परिणामको पुण्यास्रवका कारण क्यों कहा ?
४६५-४६६ कोके बन्धनेकी अपेक्षासे शुभ-अशुभ योग ऐसे भेद नहीं हैं ४६६ शुभ भावसे पापकी निर्जरा नहीं होती
४६६ इस सूत्रका सिद्धान्त
४६७ ४ आस्रवके दो भेद कर्म बन्धके चार भेद
४६८ ५ साम्परायिक प्रास्रवके ३६ भेद
४४ २५ प्रकारकी क्रियाओं के नाम और अर्थ ६ आस्रवमें हीनाधिकता का कारण
५०३ ७ अधिकरण ( निमित्त कारण-) के भेद
५०३ ८ जीव अधिकरणके भेद ( १०८ भेदका अर्थ)
५०४ है अजीवाधिकरण श्रास्रवके भेद १० ज्ञान-दर्शनावरण कर्मके आसवका कारण
०