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________________ ५०८ - मोक्षशास्त्र पढ़ाना कि 'यदि मैं इसे कहूँगा तो यह पंडित हो जायगा' सो मात्सर्य है। अंतराय-यथार्थ ज्ञानकी प्राप्तिमें विघ्न करना सो अंतराय है। आसादन-परके द्वारा प्रकाश होने योग्य ज्ञानको रोकना सो प्रासादन है। उपघात-यथार्थ प्रशस्त ज्ञानमे दोष लगाना अथवा प्रशसा योग्य ज्ञानको दूषण लगाना सो उपघात है। इस सूत्र में 'तत्' का अर्थ ज्ञान-दर्शन होता है। उपरोक्त छह दोष यदि ज्ञानावरण सम्बन्धी हों तो ज्ञानावरणके निमित्त हैं और दर्शनावरण सम्बन्धी हों तो दर्शनावरणके निमित्त हैं ।। २-इस सूत्र में जो ज्ञानावरण-दर्शनावरण कर्मके पासबके छह कारण कहे हैं उनके बाद ज्ञानावरणके लिये विशेष कारण श्री तत्त्वार्थसारके चौथे अध्यायकी १३ से १६ वी गाथामे निम्नप्रकार दिया है: ७-तत्त्वोका उत्सूत्र ६थन करना । ८-तत्त्वका उपदेश सुननेमे अनादर करना । ६-तत्त्वोपदेश सुननेमे आलस्य रखना। १०-लोभ बुद्धिसे शास्त्र बेचना । ११-अपनेको-निजको बहुश्रुतज्ञ (-उपाध्याय) मानकर अभिमानसे मिथ्या उपदेश देना। १२-अध्ययनके लिये जिस समयका निषेध है उस समयमें ( अकालमे ) शास्त्र पढना । १३-सच्चे प्राचार्य तया उपाध्यायसे विरुद्ध रहना । १४-तत्त्वोमें श्रद्धा न रखना । १५-तत्त्वोका अनुचिंतन न करना। १६-सर्वज्ञ भगवानके शासनके प्रचारमे बाधा डालना । १७-बहुश्रुत ज्ञानियोंका अपमान करना । १८-तत्त्वज्ञानका अभ्यास करनेमे शठता करना।
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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