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मोक्षशास्त्र (२) दो गुण या अधिक गुण स्निग्धता और वैसे ही दो या अधिक गुण रूक्षता समानरूपसे हो तब बन्ध नहीं होता, ऐसा बतानेके लिये 'गुणसाम्ये' पद इस सूत्र में लिया है ॥ ३५ ॥ ( देखो सर्वार्थसिद्धि, संस्कृत हिन्दी टीका, अध्याय ५ पृष्ठ १२३)
बन्ध कव होता है ? द्वयधिकादिगुणानां तु॥३६॥ अर्थः-[द्वयधिकादिगुणानां तु ] दो अधिक गुण हों इस नरहके गुण वालेके साथ ही वन्ध होता है।
टीका जब एक परमाणुसे दूसरे परमाणुमें दो अधिक गुण हों तब ही बंध होता है। जैसे कि दो गुरणवाले परमाणुका बंध चार गुणवाले परमाणुके साथ हो; तीन गुणवाले परमाणुका पांच गुणवाले परमाणुके साथ बंध हो परन्तु उससे अधिक या कम गुणवाले परमाणुके साथ बंध नहीं होता। यह बन्ध स्निग्धका स्निग्धके साथ, रूक्षका रूक्षके साथ, स्निग्धका रूक्षके साथ तथा रूक्षका स्निग्धके भी बंध होता है ॥३६॥ दो गुण अधिकके साथ मिलने पर नई व्यवस्था कैसी होती है ?
बन्धेऽधिको पारिणामिकौ च ॥ ३७॥
अर्थ:-[च ] और [ बन्धे ] बन्धरूप अवस्थामें [ अधिको ] अधिक गुणवाले परमाणुओं अपने रूपमें [पारिणामिकौ] (कम' गुरगवाले परमाणुओंका ) परिणमानेवाले होता है । (यह कथन निमित्तका है)
टीका जो अल्पगुणधारक परमाणु हो वह जब अधिक गुणधारक परमाणुके साथ बंध अवस्थाको प्राप्त होता है तब वह अल्पगुण धारक परमाणु अपनी पूर्व अवस्थाको छोड़कर दूसरी अवस्था प्रगट करता है और
• श्वेताम्बर मतमे इस व्यवस्था को नही माना है।