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अध्याय ५ सूत्र ३३-३४
४४३ छह प्रकारके पर्यायोंसे बन्ध नहीं होता, ऐसा यहां बताया है। किस तरह की स्निग्ध और रूक्ष अवस्था हो तब बंध हो यह ३६ वें सूत्र में कहेगे और किस तरहके हों तब बन्ध नही होता यह ३४-३५ वें सूत्र में कहेंगे। बंध होने पर किस जातिका परिणमन होता है यह ३७ वें सूत्रमे कहा जायगा।
(२) बंध-अनेक पदार्थोमे एकत्वका ज्ञान करानेवाले संबंध विशेष को बन्ध कहते हैं।
(३) बंध तीन तरहका होता है-१-स्प के साथ पुद्गलोंका बन्ध, २-रागादिके साथ जीवका बन्ध, और ३-अन्योन्य अवगाह पुद्गल जीवात्मक बन्ध । (प्रवचनसार गाथा १७७ ) उनमेसे पुद्गलोंका बन्ध इस सूत्रमे बताया है।
(४) स्निग्ध और रूक्षत्वके जो अविभाग प्रतिच्छेद हैं उसे गुण कहते हैं । एक, दो, तीन, चार, पांच, छह इत्यादि तथा संख्यात, असंख्यात या अनंत स्निग्ध गुण रूपसे तथा रूक्ष गुणरूपसे एक परमाणु और प्रत्येक परमाणु स्वतः स्वयं परिणमता है।
(५) स्निग्ध स्निग्धके साथ, रूक्ष रूक्षके साथ तथा एक दूसरेके साथ बन्च होता है।
बंध कव नहीं होता ?
न जघन्यगुणानाम् ॥३४॥ अर्थः-[ जघन्यगुणानाम् ] जघन्य गुण सहित परमाणुओंका [न] बन्ध नहीं होता।
टीका
(१) गुणकी व्याख्या सूत्र ३३ की टीका दी गई है । 'जघन्य गुण परमाणु' अर्थात् जिस परमाणुमे स्निग्धता या रूक्षताका एक अविभागी अंश हो उसे जघन्य गुण सहित परमाणु कहते हैं । जघन्यगुण अर्थात् एक गुण समझना।
* यहाँ द्रव्य गुण पर्याय पानेवाला गुण नही समझना परन्तु गुणका अर्थ 'स्निग्ध-रूक्षत्वकी शक्तिका नाप करनेका साधन' समझना चाहिये।