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अध्याय ४ सूत्र ७-८-६ स्खलनका संबंध नहीं होने पर भी शरीर संबंध हुए बिना उनकी वासना दूर नहीं होती। उनसे भी आगे के देवोंकी वासना कुछ मंद होती है इसलिये वे आलिंगनमात्रसे ही संतोष मानते हैं । आगे पागेके देवोंकी वासना उनसे भी मंद होती है इसलिये वे रूप देखनेसे तथा शब्द सुननेसे ही उनके मनकी वासना शांत हो जाती है । उनसे भी आगेके देवोंके चितवनमात्रसे कामशांति हो जाती है। कामेच्छा सोलहवें स्वर्गतक है उसके आगेके देवोंके कामेच्छा उत्पन्न ही नही होती ॥ ७॥
शेषाः स्पर्शरूपशब्दमनः प्रवीचाराः॥८॥
अर्थ-शेष स्वर्गके देव, देवियोंके स्पर्शसे, रूप देखने से, शब्द सुनने से और मनके विचारोंसे काम' सेवन करते है।
टीका तीसरे और चौथे स्वर्ग के देव, देवियोके स्पर्शसे, पांचवेसे आठवे स्वर्ग तकके देव, देवियोंके रूप देखनेसे, नवमेसे बारहवें स्वर्ग तकके देव, देवियोंके शब्द सुननेसे, और तेरहवेंसे सोलहवें स्वर्ग तकके देव, देवियो संबंधी मनके विचारमात्रसे तृप्त हो जाते है-उनकी कामेच्छा शात हो जाती है ।।८।।
परेऽप्रवीचाराः ॥ ६ ॥ अर्थ-सोलहवे स्वर्गसे प्रागेके देव कामसेवन रहित हैं ( उनके कामेच्छा उत्पन्न ही नही होती तो फिर उसके प्रतिकारसे क्या प्रयोजन ?)
टीका १. इस सूत्रमे 'परे' शब्दसे कल्पातीत ( सोलहवें स्वर्गसे ऊपरके) सब देवोंका संग्रह किया गया है। इसलिये यह समझना चाहिये कि अच्युत (सोलहवें) स्वर्गके ऊपर नवग्रेवेयिकके ३०६ विमान, नव अनुदिश विमान और पांच अनुत्तर विमानोंमें बसनेवाले अहमिन्द्र हैं, उनके कामसेवनके भाव नही हैं वहां देवांगनाएँ नही है। (सोलहवे स्वर्गसे ऊपरके देवोमे भेद नही है, सभी समान होते हैं इसलिये उन्हे अहमिन्द्र कहते है )
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