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अध्याय ४ सूत्र ४-५-६
.३४३ ७. अनीक-जो देव पैदल इत्यादि सात प्रकारकी सैनामे विभक्त रहते हैं उन्हे अनीक कहते है । [Army ]
८. प्रकीर्णक-जो देव नगरवासियोके समान होते हैं उन्हे प्रकीर्णक कहते हैं । [LPeople ]
९. आभियोग्य-जो देव दासोंकी तरह सवारी आदिके काम आते है उन्हे आभियोग्य कहते हैं । इसप्रकारके देव घोड़ा, सिंह, हंस इत्यादि प्रकारके बाहनरूप ( दूसरे देवाके उपयोग लिये ) अपना रूप बनाते हैं। [ Conveyances ]
१०. किल्विषिक-जो देव चांडालादिकी भांति हलके दरजेके काम करते है उन्हे किल्विषिक कहा जाता है [ Servile grade ] ॥४॥
व्यन्तर और ज्योतिषी देवोंमें इन्द्र आदि भेदों की विशेषता त्रायस्त्रिंशलोकपालवा व्यन्तरज्योतिष्काः ॥५॥
अर्थ-ऊपर जो दश भेद कहे हैं उनमेसे त्रायस्त्रिंश और लोकपाल ये भेद व्यन्तर और ज्योतिषी देवोमे नही होते अर्थात् उनमे दो भेदोको छोडकर बाकोके आठ भेद होते है ॥५॥
देवोंमें इन्द्रोंकी व्यवस्था
पूर्वयोटद्राः ॥६॥ अर्थ-भवनवासी और व्यन्तरोमे प्रत्येक भेदमे दो दो इन्द्र होते है ।
टीका
भवनवासियोंके दश भेद हैं इसलिये उनमे बीस इन्द्र होते हैं। व्यन्तरोके आठ भेद हैं इसलिये उनमे सोलह इन्द्र होते हैं, और दोनोमे इतने ही ( इन्द्र जितने ही ) प्रतीन्द्र होते है।