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मोक्षशास्त्र
५. तीसरी विक्रियाऋद्धिका स्वरूप
विक्रिया ऋद्धि अनेक प्रकारकी है- ( १ ) अणिमा, (२) महिमा, (३) लघिमा, (४) गरिमा, (५) प्राप्ति, (६) प्राकाम्य, (७) ईशित्व, (८) वशित्व, (e) अप्रतिघात, (१०) अंतर्धान, (११) कामरूपित्व इत्यादि अनेक भेद हैं उनका स्वरूप निम्न प्रकार है ।
अणुमात्र शरीर करनेकी सामर्थ्य को अणिमाऋद्धि कहते हैं, वह कमलके छिद्रमें प्रवेश करके वहाँ बैठकर चक्रवर्तीकी विभूति रचता है । १ । मेरुसे भी महान शरीर करनेकी सामर्थ्यको महिमाऋद्धि कहते है । २ । पवनसे भी हलका शरीर बनानेकी सामर्थ्य को लघिमाऋद्धि कहते हैं । ३ । वज्रसे भी अतिभारी शरीर करने की सामर्थ्यको गरिमाऋद्धि कहते हैं । ४ । भूमिमें बैठकर उँगलीको आगे करके मेरुपर्वतके शिखर तथा सूर्यविमानादिको स्पर्श करनेकी शक्तिको प्राप्तिऋद्धि कहते हैं । ५ । जलमे जमीनको उन्मज्जन ( ऊपर लाना ) तथा निमज्जन ( डुबा देना ) करनेकी शक्तिको प्राकाम्यऋद्धि कहते हैं । ६ । त्रिलोकका प्रभुत्व रचनेकी सामर्थ्यको ईशित्व ऋद्धि कहते हैं ७ | देव, दानव, मनुष्य इत्यादिको वशीकरण करनेकी सामर्थ्यको वशित्वऋद्धि कहते हैं । ८ । पर्वतादिक अन्दर आकाशकी भांति गमन - आगमन करनेकी सामर्थ्यको प्रतिघातऋद्धि कहते हैं । ६ । अदृश्य होनेकी सामर्थ्यको अन्तर्धानऋद्धि कहते हैं । १० । एक साथ अनेक आकाररूप शरीर करने की सामर्थ्यको कामरूपित्वऋद्धि कहते हैं । ११ । इत्यादि अनेक प्रकार की विक्रिया ऋद्धि हैं ।
नोट:- यहाँ निमित्तनैमित्तिकसंबंध समझाया है किन्तु इससे यह नहीं समझना चाहिये कि जीव शरीरका या अन्य किसी द्रव्यका कुछ करता है । एक द्रव्य दूसरे द्रव्यका कुछ नही कर सकता । शरीरादि परद्रव्यकी जव उस प्रकारकी होने योग्य अवस्था होती है तब जीवके भाव तदनुकूल अपने कारण होते हैं । इतना निमित्त - नैमित्तिकसंबंध यहाँ बतलाया गया है ।