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मोक्षशास्त्र
(१४) चतुर्दशपूर्वित्वबुद्धि – संपूर्ण श्रुतकेवलित्वका होना चतुर्दशपूवित्वबुद्धि है |
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(१५) अष्टांगनिमित्तताबुद्धि — अन्तरिक्ष, भोम, अंग, स्वर, व्यंजन, लक्षण, छिन्न और स्वप्न यह आठ प्रकारका निमित्तज्ञान है, उसका स्वरूप निम्नप्रकार है:
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सूर्य, चन्द्र, नक्षत्रके उदय, अस्तादिको देखकर अतीत श्रनागतफल को जानना सो अन्तरिक्षनिमित्तज्ञान है ॥ १ ॥
पृथ्वी की कठोरता, कोमलता, चिकनाहट या रूखापन देखकर विचार करके अथवा पूर्वादि दिशामें सूत्र पड़ते हुए देखकर हानि - वृद्धि; जय-पराजय इत्यादि को जानना तथा भूमिगत स्वर्णं चांदी इत्यादिको प्रगट जानना सो भोमनिमित्तज्ञान है ॥ २ ॥
अंगोपांगादिके दर्शन - स्पर्शनादिसे त्रिकालभावी सुख दुःखादि को जानना सो अंगनिमित्तज्ञान है ॥ ३ ॥
अक्षर-अनक्षररूप तथा शुभाशुभको सुनकर इष्टानिष्टफलको जानना सो स्वरनिमित्तज्ञान है ॥ ४ ॥
मस्तक, मुख, गर्दन इत्यादिमें तल, मूरल, लाख इत्यादि लक्षण देखकर त्रिकाल सम्बन्धी - हित-अहित को जान लेना सो व्यंजननिमित्तज्ञान है ॥ ५ ॥
शरीरके ऊपर श्रीवृक्ष, स्वस्तिक, कलश इत्यादि चिह्न देखकर त्रिकाल सम्बन्धी पुरुषोंके स्थान, मान, ऐश्वर्यादि विशेषका जानना सो लक्षणनिमित्तज्ञान है ॥ ६ ॥
वस्त्र-शस्त्र-श्रासन-शयनादिसे, देव-मनुष्य - राक्षसादिसे तथा शस्त्रकंटकादिसे छिदे हुएको देखकर त्रिकाल सम्बन्धी लाभ-लाभ, सुख दुःखका जानना सो छिन्ननिमित्तज्ञान है ॥ ७ ॥
वात,
पित्त, कफ रहित पुरुपके मुख में पिछली रात्रिमें चन्द्रमा, सूर्य, पृथ्वी, पर्वत या समुद्रका प्रवेशादिका स्वप्न होना सो शुभस्वप्न है, घी तेलसे अपनी देह लिप्त और गधा ऊँट पर चढ़कर दक्षिण दिशामें गमन :