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मोक्षशास्त्र
टीका १. आर्यों के दो भेद हैं-ऋद्धिप्राप्त आर्य और अनऋद्धिप्राप्त
आर्य।
ऋद्धिप्राप्तमार्य=जिन आर्य जीवोंको विशेष शक्ति प्राप्त हो । अनऋद्धिप्राप्तआर्य=जिन आर्य जीवोंको विशेप शक्ति प्राप्त नहीं हो।
ऋद्धिप्राप्त आर्य
२. ऋद्धिप्राप्तआर्य के आठ भेद हैं-(१) बुद्धि, (२) क्रिया, ( ३ ) विक्रिया, (४) तप, (५) बल, (६ ) औषध, (७) रस, और (८) क्षेत्र इन आठ ऋद्धियोंका स्वरूप कहते है।
३. बुद्धिऋद्धि-बुद्धिऋद्धिके अठारह भेद हैं-(१) केवलज्ञान, (२) अवधिज्ञान, (३) मनःपर्ययज्ञान, (४) बीजबुद्धि, (५) कोष्टबुद्धि, (६) पदानुसारिणी, (७) सभिन्न श्रोतृत्व, (८) दूरास्वादनसमर्थता, ( 8 ) दूरदर्शनसमर्थता, ( १० ) दूरस्पर्शनसमर्थता, (११) दूरघ्रारणसमर्थता, (१२) दूरश्रोतृसमर्थता, ( १३ ) दशपूर्वित्व, (१४ ) चतुर्दशपूवित्व, ( १५) अष्टांगनिमित्तता, ( १६ ) प्रज्ञाश्रमणत्व, ( १७) प्रत्येकवुद्धता, और ( १८ ) वादीत्व इनका स्वरूप निम्नप्रकार है
(१-३) केवलज्ञान,-अवधिज्ञान, मनःपर्ययज्ञान इन तीनोंका स्वरूप अध्याय १, सूत्र २१ से २५ तथा २७ से ३० तक में आ गया है।
(४) वीजवुद्धि-एक वीजपदके ( मूलपदके ) ग्रहण करनेसे अनेकपद, और अनेक अर्थोका जानना सो वीजबुद्धि है।
(५) कोएबुद्धि-जैसे कोठारमें रखे हुए धान्य, वीज इत्यादि बहुत समय तक जैसके तैसे बने रहते हैं घटते बढ़ते नही है परस्परमें