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मध्याय २ उपसंहार
२९७ का जन्म होता है और वे योग्य समयमें केवलज्ञानको प्राप्त करते हैं तथा उनकी दिव्यध्वनि स्वयं प्रगट होती है, ऐसा समझना चाहिये।
८.तात्पर्य
तात्पर्य यह है कि इस अध्यायमें कहे गये पांच भाव तथा उनके दूसरे द्रव्योंके साथके निमित्त नैमित्तिक सम्बन्धका ज्ञान करके अन्य सब परसे लक्ष हटाकर परमपारिणामिकभावकी और अपनी पर्यायको उन्मुख करने पर सम्यग्दर्शन होता है और फिर उस ओर बल बढ़ाने पर सम्यग्चारित्र होता है। यही धर्ममार्ग ( मोक्षमार्ग) है।
इसप्रकार श्री उमास्वामी विरचित मोक्षशास्त्रके दूसरे अध्यायको
टीका समास हुई।