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________________ २४४ मोक्षशास्त्र ७. द्रव्यपरिवर्तनका स्वरूप यहाँ द्रव्यका अर्थ पुद्गलद्रव्य है । जीवका विकारी अवस्थामें पुद्गलोंके साथ जो संबंध होता है उसे द्रव्यपरिवर्तन कहते हैं। उसके दो भेद हैं-(१) नोकर्मद्रव्यपरिवर्तन और (२) कर्मद्रव्यपरिवर्तन । (१) नोकर्मद्रव्यपरिवर्तनका स्वरूप-ौदारिक तैजस और कार्मण अथवा वैक्रियक, तेजस और कार्मण इन तीन शरीर और छह पर्याप्तिके योग्य जो पुद्गलस्कंध एक समय में एक जीवने ग्रहण किये वह जीव पुनः उसीप्रकारके स्निग्ध-रूक्ष स्पर्श, वर्ण रस, गंध आदिसे तथा तीव्र, मंद या मध्यमभाववाले स्कंधोंको ग्रहण करता है तब एक नोकर्मद्रव्यपरिवर्तन होता है। (बीचमें जो अन्य नोकर्मका ग्रहण किया जाता है उन्हें गणनामे नही लिया जाता।) उसमें पुद्गलोंकी संख्या और जाति ( Quality ) बराबर उसीप्रकारके नोकर्मोकी होनी चाहिये । २. कर्मद्रव्यपरिवर्तनका स्वरूप एक जीवने एक समयमें आठ प्रकारके कर्मस्वभाववाले जो पुद्गल ग्रहण किये थे वैसे ही कर्मस्वभाववाले पुद्गलोको पुनः ग्रहण करे तब एक कर्म द्रव्यपरिवर्तन होता है । ( बीचमें उन भावोमें किचित् मात्र अन्य प्रकारके दूसरे जो जो रजकरण ग्रहण किये जाते हैं उन्हे गणनामें नहीं लिया जाता ) उन आठ प्रकारके कर्म पुद्गलोंकी संख्या और जाति बराबर उसीप्रकारके कर्मपुद्गलोंकी होनी चाहिए। स्पष्टीकरण-आज एक समयमें शरीर धारण करते हुए नोकर्म और द्रव्यकर्मके पुद्गलोंका संबंध एक अज्ञानी जीवको हुआ, तत्पश्चात् नोकर्म और द्रव्यकर्मोका संबंध उस जीवके बदलता रहता है । इसप्रकार परिवर्तन होनेपर वह जीव जब पुनः वैसे ही शरीर धारण करके वैसे ही नोकर्म और द्रव्यकर्मोको प्राप्त करता है तब एक द्रव्यपरिवर्तन पूरा किया कहलाता है । ( नोकर्मद्रव्यपरिवर्तन और कर्मद्रव्यपरिवर्तनका काल एकसा ही होता है)।
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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