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मोक्षशास्त्र धान रहितं त्रैलोक्योदर विवरण वर्ति समस्त वस्तुगतानंत धर्म प्रकाशकमखंड प्रतिभासमयं केवलज्ञानं पूर्वमेव तिष्ठति" । तथा गा. २६ की टीका में भी कहा है कि ...'अत्र स्वयं जातमिति वचनेन पूर्वोक्तमेव निरुपाधित्वं समर्थितं । तथा च स्वयमेव सर्वज्ञो जातः सर्वदर्शी च जातो निश्चयनयेनेति पूर्वोक्तमेव सर्वज्ञत्वं सर्वदर्शीत्वं च समर्थितमिति ।" तथा गाथा १५४ की टीकामें कहा है कि....."समस्त वस्तुगतानंत धर्माणां युगपद्विशेष परिच्छित्ति समर्थ केवलज्ञान"
(५) परमात्मप्रकाश अ० २ गा. १०१ की सं. टीकामें कहा है कि-"जगत्त्रय कालत्रयवर्ति समस्त द्रव्यगुण पर्यायाणांकमकरण व्यवधान रहित्वेन परिच्छित्ति समर्थ विशुद्ध दर्शन ज्ञानं च ।"
(६) समयसारजी शास्त्र में आत्म द्रव्यको ४७ शक्ति कही है उनमें सर्वज्ञत्वशक्ति का स्वरूप ऐसा कहा है कि "विश्वविश्व विशेष भाव परिणतात्मज्ञानमयी सर्वज्ञशक्तिः । अर्थः-समस्त विश्वके (छहों द्रव्यके) विशेष भावोंको जानने रूपसे परिणमित आत्मज्ञानमयी सर्वज्ञत्वशक्ति ॥१०॥"
नोंध-सर्वज्ञ मात्र आत्मज्ञ ही है ऐसा कहना ठीक नहीं है कारण कि-संपूर्ण आत्मज्ञ होनेवाला, परद्रव्योंको भी सर्वथा, सर्व विशेष भावों सहित जानता है। विशेषके लिये देखो-आत्मधर्म मासिक वर्ष ९ अंक नं. ८ सर्वज्ञत्व शक्तिका वर्णन; कोई असत् कल्पना द्वारा सर्वज्ञका स्वरूप अन्यथा मानते हैं उसका तथा सर्वज्ञ वस्तुप्रोंके अनंतधर्म को नही जानते ऐसा मानते हैं उनका उपरोक्त कथनके आधारसे निराकरण हो जाता है।