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अध्याय १ सूत्र २२ क्षेत्र अपेक्षासे मध्यम अवधिज्ञानका विषय-जघन्या और उत्कृष्टके बीचके क्षेत्र भेदोंको जानता है।
कालापेक्षासें जघन्य अवधिज्ञानका विषय-प्रावलीके असंख्यात भाग प्रमाण भूत और भविष्यको जानता है।
कालापेक्षासे उत्कृष्ट अवधिज्ञानका विषय-असंख्यात लोक प्रमाण अतीत और अनागतकालको जानता है।
___ कालापेक्षासे मध्यम अवधिज्ञानका विषय-जघन्य और उत्कृष्टके बीचके काल भेदोंको जानता है।
भाव अपेक्षासे अवधिज्ञानका विषय-पहिले द्रव्य प्रमाण, निरूपण किये गये द्रव्योकी शक्तिको जानता है।
श्री धवला पुस्तक १ पृष्ठ ६३-६४ ] (८) कर्मका क्षयोपशम निमित्त मात्र है, अर्थात् जीव अपने पुरुषार्थसे अपने ज्ञानकी विशुद्ध अवधिज्ञान पर्यायको प्रगट करता है उसमे 'स्वयं' ही कारण है। अवधिज्ञानके समय' अवधिज्ञानावरणका क्षयोपशम स्वय होता है इतना संबंध बतानेको निमित्त बताया है। कर्मकी उस समय की स्थिति कर्मके अपने कारणसे क्षयोपशमरूप होती है, इतना निमित्त-नैमित्तिक संबंध है । वह यहां बताया है ।
क्षयोपशमका अर्थ-(१) सर्वधातिस्पर्द्धकोका उदयाभाविक्षय, (२) देशघातिस्पर्द्धकोंमे गुणका सर्वथा घात करनेको शक्तिका उपशम क्षयोपशम कहलाता है । तथा
क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शनमें वेदक सम्यक्त्वप्रकृतिके 'स्पर्द्धकोंको क्षय' और मिथ्यात्व, तथा सम्यक् मिथ्यात्व प्रकृतियोंके उदयाभावको उपशम कहते है । प्रकृतियोके क्षय तथा उपशमको क्षयोपशम कहते है [श्री धवला पुस्तक ५, पृष्ठ २००-२११-२२१ ]
(१०) गुणप्रत्यय अवधिज्ञान सम्यग्दर्शन, देशवत अथवा महानतके निमित्तसे होता है तथापि वह सभी सम्यग्दृष्टि, देशवती या महाव्रती, जीवोके नही होता, क्योकि असंख्यात लोकप्रमाण सम्यक्त्व, संयमासयन