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अध्याय १ सूत्र १५ निमित्त होता ही नहीं, यह कहकर यदि कोई निमित्तके अस्तित्वका इन्कार करे तब, या उपादान कार्य कर रहा हो तव निमित्त उपस्थित होता है, यह बतलाया जाता है, किन्तु यह तो निमित्तका ज्ञान करानेके लिये है। इसलिये जो निमित्तके अस्तित्वको ही स्वीकार न करें उसका शान सम्यग्ज्ञान नहीं है। यहाँ सम्यग्ज्ञानका विषय होनेसे आचार्यदेवने निमित्त कैसा होता है इसका ज्ञान कराया है। जो यह मानता है कि निमित्त उपादानका कुछ करता है उसकी यह मान्यता मिथ्या है, और इसलिये यह समझना चाहिये कि उसे सम्यग्दर्शन नही है ॥ १४ ॥
मतिज्ञानके क्रमके भेदअवग्रहहावायधारणाः ॥ १५ ॥ अर्थ-[अवग्रह ईहा अवाय धारणाः] अवग्रह, ईहा, अवाय, और धारणा यह चार भेद हैं।
टीका
अवग्रह-चेतनामें जो थोड़ा विशेषाकार भासित होने लगता है उस जानको 'अवग्रह' कहते हैं । विषय और विषयी ( विषय करनेवाले ) के योग्य स्थानमें पा जानेके वाद होनेवाला आद्यग्रहण अवग्रह है। स्व और पर दोनोंका (जिस समय जो विपय हो उसका ) पहिले अवग्रह होता है । ( Perception )
ईहा-विग्रहके द्वारा जाने गये पदार्थको विशेषरूपसे जाननेकी चेष्टा (-आकांक्षा ) को ईहा कहते हैं। ईहाका विशेष वर्णन ग्यारहवें सूत्रके नीचे दिया गया है। (Conception)
अवाय-विशेष चिह्न देखनेसे उसका निश्चय हो जाय सो अवाय है। ( Judgment)