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मंगलमन्त्र णमोकार : एक अनुचिन्तन
अक्षरपक्ति विद्या - ॐ नमोऽर्हते केवलिने परमयोगिनेऽनन्तशुद्धिपरिणाम विस्फुरदुरुशुक्लध्यानाग्निर्दग्धकर्सबीजाय प्राप्तानन्तचतुष्टयाय सौम्याय शान्ताय मगलाय वरदाय अष्टादशदोषरहिताय स्वाहा । यह अभय स्थान मन्त्र भी कहा गया है। इसके जपनेसे कामनाएं पूर्ण होती हैं । प्रणवयुगल और मायायुगल मन्त्र - ह्रीं ॐ ॐ ह्रीं, ह सः ।
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अचिन्त्य फलप्रदायक मन्त्र
ह्रीं नमः ।
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ॐ ह्रीं स्वहं णमो णमो अरिहताणं
पापमक्षिणी विद्यारूप मन्त्र-ॐ अर्हमुखकमलवासिनी पापात्मक्षयंकरि, श्रुतिज्ञानज्वाळा सहस्रप्रज्वलिते सरस्वति भस्पाप हन हन दह दह क्षां क्षीं क्ष क्ष क्षः क्षीरवरधवले अमृतसभवें वं वं हूं हूं स्वाहा । इस मन्त्रके जपके प्रभाव से साधकका चित्त प्रसन्नता धारण करता है और समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और आत्मामें पवित्र भावनाओका सचार हो जाता है ।
गणधर लयमें आये हुए 'ॐ णमो अरिहंताणं', 'ॐ णमो सिद्धाण', 'ॐ णमो आइरियाण', 'ॐ णमो उवज्झायाणं', 'ॐ णमो लोए सव्वसाहूण' आदि मन्त्र णमोकार महामन्त्रके अभिन्न अंग ही हैं ।
णमोकार मन्त्र कल्पके सभी मन्त्र इस महामन्त्रसे निकले हैं । ४६ मन्त्र इस कल्पके ऐसे हैं, जिनमे इस महामन्त्र के पदोका सयोग पृथक् रूप में विद्यमान हैं । इन मन्त्रोका उपयोग भिन्न-भिन्न कार्योंके लिए किया जाता है । यहाँपर कुछ मन्त्र दिये जा रहे हैं -
६.
रक्षामन्त्र' ( किसी भी कार्यके आरम्भ में इन रक्षा मन्त्र के जयसे उस कार्यमें विघ्न नहीं माता है )
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ॐ णमो अरिहताण हा हृदय रक्ष रक्ष हुं फट् स्वाहा । ॐ णमो सिद्धाण हों सिरो रक्ष रक्ष हुं फट् स्वाहा ।
ॐ नमो आइरियाणं हळू शिखा रक्ष रक्ष हु फट् स्वाहा । ॐ णमो उवज्झायाण हैं एहि एहि भगवति वज्रकवचमज्रिणी रक्ष
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