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मगलमन्त्र णमोकार एक अनुचिन्तन
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बीज पल्लव इसो महामन्त्रसे निकले हैं । ज्ञानार्णवमें षोडशाक्षर, पडक्षर, चतुरक्षर, द्वयक्षर, एकाक्षर, पचाक्षर, त्रयोदशाक्षर, सप्ताक्षर, अक्षरपक्ति इत्यादि नाना प्रकारके मन्त्रोकी उत्पत्ति इसी महामन्त्रसे मानी है । षोडशाक्षर मन्त्रकी उत्पत्तिका वर्णन करते हुए कहा गया है. स्मर पन्चपदोद्भूतां महाविद्यां जगन्नुताम् । गुरुपञ्चकनामोत्यां षोडशाक्षरराजिताम् ॥
अस्याः शतद्वयं ध्यानी जपन्नेकाग्रमानसः । अनिच्छन्नप्यवाप्नोति चतुर्थतपसः फलम् ॥ विद्यां षड्वर्णसंभूतामजय्यां पुण्यशालिनीम् । जपन्प्रागुक्तमभ्येति फलं ध्यानी शतत्रयम् ॥ चतुर्वर्णमयं मन्त्र चतुर्वर्गफलप्रदम् । चतु शतं जपन् योगी चतुर्थस्य फलं लभेत् ॥ वर्णयुग्मं श्रुतस्कन्धसारभूतं शिवप्रदम् । ध्याये जन्मोद्भवाशेष क्लेशविध्वंसनक्षमम्
॥"
सिद्धेः सौंधं समारोदुमियं सोपानमाटिका । त्रयोदशाक्षरोत्पन्ना विद्या विश्वातिशायिनी ॥
अर्थात् — पोडशाक्षरी महाविद्या पंचपदी और पचगुरुओके नामोंसे उत्पन्न हुई हैं, इसका ध्यान करनेसे सभी प्रकार के अभ्युदयोकी प्राप्ति होती है । यह सोलह अक्षरका मन्त्र यह है - "अहंत्सिदाचार्योपाध्याय सर्वसाधुभ्यो नम" ।” जो व्यक्ति एकाग्र मन होकर इस सोलह अक्षरके मन्त्रका ध्यान करता है, उसे चतुर्थ तप - एक उपवासका फल प्राप्त होता है । णमोकार मन्त्र से निसृत - 'अरिहन्त सिद्ध' इन छह अक्षरोसे उत्पन्न हुई विद्याका तीन सौ वार - तीन माला प्रमाण जाप करनेवाला एक उपवासके फलको प्राप्त होता है, क्योंकि पडक्षरी विद्या अजय है और पुण्यको उत्पन्न करनेवाली तथा पुण्यते शोभित है। उक्त महासमुद्र से निकला हुआ 'अरिहन्त' यह चार अक्षरोंवाला मन्त्र धर्म, अर्थ, काम और मोक्षरूप फलको
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