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मंगलमन्त्र णमोकार : एक अनुचिन्तन
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रीतिमँ अन्तर हो जाता है अथवा दोनो शान्त हो जाती है । जैसे द्वन्द्वप्रवृत्तिके उभडने पर यदि सहानुभूतिको प्रवृत्ति उभाड दी जाये तो उक्त प्रवृत्तिका विलयन सरलतासे हो जाता है । णमोकार मन्त्रका स्मरण इस दिशामें भी सहायक सिद्ध होता है । इस शुभ प्रवृत्ति के उत्पन्न होनेसे अन्य प्रवृत्तियाँ सहज में विलीन की जा सकती है ।
मूलप्रवृत्तिके परिवर्तनका तीसरा उपाय मार्गान्तरीकरण है। यह उपाय दमन और विलयन के उपायसे श्रेष्ठ है । मूलप्रवृत्तिके दमनसे मानसिक शक्ति सचित होती है, जबतक इस सचित शक्तिका उपयोग नहीं किया जाये, तत्रतक यह हानिकारक भी सिद्ध हो सकती है । णमोकार मन्त्रका स्मरण इस प्रकारका अमोघ अस्त्र हैं, जिसके द्वारा वचपन से ही व्यक्ति अपनी मूलप्रवृत्तियोका मार्गान्तरीकरण कर सकता है। चिन्तन करने की प्रवृत्ति मनुष्य में पायी जाती है, यदि मनुष्य इस चिन्तनकी प्रवृत्तिमें विकारी भावनाओंको स्थान नहीं दे और इस प्रकारके मगलवाक्योंका हो चिन्तन करे तो चिन्तन प्रवृत्तिका यह सुन्दर मार्गान्तरीकरण है । यह सत्य है कि मनुष्यका मस्तिष्क निरर्थक नहीं रह सकता है, उसमें किसीन किसी प्रकारके विचार अवश्य आयेंगे । अतः चरित्र भ्रष्ट करनेवाले विचारोंके स्थानपर चरित्र-वर्धक विचारोको स्थान दिया जाये तो मस्तिष्कको क्रिया भी चलती रहेगी तथा शुभ प्रभाव भी पड़ता जायेगा । ज्ञानार्णव में शुभचन्द्राचार्यने बतलाया है
अपास्य कल्पनाजाल चिदानन्दमये स्त्रयम् । य. स्वरूपे लय प्राप्त. स स्याइत्नत्रयास्पदम् ॥ नित्यानन्दमय शुद्धं चित्स्वरूप सनातनम् । पश्यात्मनि परं ज्योतिराद्वतीयमनव्ययम् ॥ अर्थात् — नमस्त कल्पनाजालको दूर करके अपने चैतन्य और आनन्दमय स्परूपमें लोन होता, निश्वय रत्नययको प्राप्तिका स्थान है । जो इस विचारमें लीन रहता है कि में नित्य आनन्दमय है, शुद्ध हूँ, चैतन्यस्वरूप