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स्थविरकल्पि
मंगलमन्त्र णमोकार,एक अनुचिन्तन
परद्रव्योंसे भिन्न
आत्मद्रव्यको
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अनुभवमे लाना ही स्व-समय है ।
स्वामित्व,
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जो भिक्षु वस्त्र और पात्र
अपने पास रखकर संयमकी साधना करता है - वह स्थविरकल्पि कह
लाता है ।
स्थायीमाव
७८
जब किसी प्रकारका भाव मनमें बार-बार उठता है अथवा एक ही प्रकारकी उमंग जब मनमें अधिक देर तक ठहरती है तब वह मनमे विशेष प्रकारका स्थायी भाव पैदा कर देती है ।
स्थिति
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कर्मोंका जीव के साथ अमुक समय तक बँधे रहनेका नाम
स्थितिवन्ध है ।
स्मरण
७८
पूर्वानुभूत अनुभवो अथवा घटनामोको पुन वर्तमान चेतनामें लानेकी क्रियाको स्मरण कहते हैं । स्व-संवेदन ज्ञान
३१
ज्ञान कहलाता है ।
स्व-समय
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४५
·
अपनी आत्मामें रमण करनेकी प्रवृत्ति स्व-समय है । अर्थात्
किसी वस्तु अधिकारी नेका
ही स्वामित्व कहते है ।
स्वाध्याय
·
चिन्तन, मननपूर्वक शास्त्रोका
अध्ययन करना स्वाध्यायः
क्षमा
धर्म
क्रोधरूप परिणति न होने देना
क्षमा है ।
क्षयोपशम
कर्मो का क्षय और होना क्षयोपशम है ।
क्षायिक सम्यक्व
स्वानुभूत रूप ज्ञान स्व-संवेदन क्षायिक दान
7/01 201
दर्शन मोहनीयकी तोनं, प्रकृतियाँ और अनन्तानुवन्धी चार; इन सात प्रकृतियोंके क्षयसे जो सम्यक्त्व उत्पन्न होता है उसे क्षायिक सम्य क्त्व कहते हैं ।
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दानान्तराय कर्मका अत्यन्त क्षय होनेसे दिव्य ध्वनि आदिके
द्वारा अनन्त प्राणियोंका उपकार करनेवाला क्षायिक दान होता है।।