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पहिरात्मा
२३८ मंगलमन्त्र णमोकार एक अ.न.प.
८. मुलगुण ___मन्त्रके तीन अंग होते हैं - - मुख्य गुणोंको मूल गुण कहा रूप, बीज और फल । मन्त्रके द्वारा जाता है । . !
2 MIRE होनेवाली किसी वस्तुकी प्राप्ति
भूल प्रवृत्ति उसका फल कहलाती है।
मूल प्रवृत्ति एक प्रकृतिदत्तः बन्ध
१३० शक्ति है। यह शक्ति मानसिक ____ कर्म और आत्माके प्रदेशोंका संस्कारोंके रूपमें प्राणीके मनमें परस्परमें मिलना बन्ध है। स्थित रहती है। जिसके कारण बहिरंग परिग्रह
प्राणी किसी विशेष प्रकारके पदार्थ धन-धान्यादि रूप दश प्रकार
की ओर ध्यान देता है और उसकी का बहिरंग परिग्रह होता है। उपस्थितिमें विशेष प्रकारका वेदना:
३३ की अनुभूति करता है तथा किसी शरीर और आत्माको एक
विशिष्ट कार्यमे प्रवृत्त होता है। समझनेवाला मिथ्याष्टि बहि
मोहन
... रात्मा है।
जिन मन्योंके द्वारा किसीको बीज
८७ मोहित किया जा सके, वे मोहन. मन्त्रकी ध्वनियोंमे जो शक्ति निहित रहती है उसे बीज कहते हैं।
मोहनीय
मोहनीय कर्म वह है जिसके मिथ्या ज्ञान
उदयसे आत्मामे दर्शन और चारित्र मिथ्या दर्शनके साथ होनेवाला
रूप प्रवृत्ति उत्पन्न न हो। ज्ञान मिथ्या ज्ञान कहलाता है।
यम मिश्र
१२३ इन्द्रियोका दमन कर अहिंसक मिश्रित परिणतिको जिसे न प्रवत्तिको अपनाना यम है। तो हम सम्यक्त्व रूप कह सकते योग .. हैं और न मिथ्यात्व रूप ही- मन, वचन, कायकी प्रवृत्तिको मिश्र कहा जाता है।
योग कहते हैं।
मन्त्र कहलाते हैं। . .