SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 232
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पद २३६ मगलमन्त्र णमोकार : एक अनुचिन्तन ११९ परिणाम नियम जिसके द्वारा अर्थ बोध हो उसे यह नियम सन्तोष और पद कहते हैं। असन्तोषका नियम भी कहा जाता पदार्थ-द्वार ११९ है। यदि किसी क्रियाके करनेसे द्रव्य और भावपूर्वक णमोकार प्राणीको सन्तोष मिलता है तो उस मन्त्रके पदोको व्याख्या करना क्रियाके करनेकी प्रवृत्ति प्रवल हो पदार्थ-द्वार है । जाती है और यदि किसी क्रियाके परमेष्ठी करनेसे असन्तोष मिलता है तो जो परमपद-उत्कृष्ट स्थानमे उस प्रवृत्तिका विनाश हो जाता है, स्थित हो अर्थात् जिनमे आत्मिक इस नियम-द्वारा उपयोगी कार्य गुणोका रत्नत्रयका विकास हो होते है और अनुपयोगी कार्योंका गया है। अन्त हो जाता है। परसमय पल्लव ९१ मैं मनुष्य हूँ, यह मेरा शरीर मन्त्रके अन्तमे जोडे जानेवाले है इस प्रकार नाना अहकार और स्वाहा, स्वधा, फट, वषट् आदि ममकार भावोंसे युक्त हो अवि- शब्द पल्लव कहलाते हैं। चलित चेतना विलास रूप आत्म- पश्चानुपूर्वी १२९व्यवहारसे व्युत होकर समस्त यह पूर्वानुपूर्वीके विपरीत है। निन्द्य क्रिया समूहके अंगीकार इसमे हीन गुणकी अपेक्षा क्रमकी करनेसे राग, द्वेषके उत्पत्तिमे संलग्न स्थापना की जाती है । रहनेवाला परसमय रत कहलाता पापासव है। वास्तवमे पर-द्रव्योंका नाम ही पाप प्रकृतियोका आना पापापरसमय है। स्रव है। परिग्रह ३२ पुद्गल २६ ममता या मू का नाम रूप, रस, गन्ध और स्पर्शवाले परिग्रह है। द्रव्यको पुद्गल कहते हैं। ४७
SR No.010421
Book TitleMangal Mantra Namokar Ek Anuchintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1967
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy