________________
२१४
मगलमन्त्र णमोकार : एक अनुचिन्तन
गलती करता है तथा गलत उपदेश देता है। जब मनुष्यको उक्त दोनो .. कमजोरियां निकल जाती है तब व्यक्ति यथार्थ ज्ञाता द्रष्टा हो जाता है और अन्य लोगोको भी यथार्थ बातें बतलाता है। , पचपरमेष्ठी इसी प्रकारके शुद्धात्मा हैं, उनमे रत्नत्रय गुण प्रकट हो गया है, अत: वे परमात्मा भी कहलाते हैं। इनका नैसर्गिक वेष वीतरागताका सूचक होता. है। ये निर्विकारी आत्मा विश्वके समस्त प्राणियोंका हित साधन कर .. सकते हैं। यदि विश्वमें इस महामन्त्रके आदर्शका प्रचार हो जाये तो आज जो भौतिक संघर्ष हो रहा है, एक राष्ट्रका मानव समुदाय अपनी परिग्रह-पिपासाको शान्त करनेके लिए दूसरे देशके मानव समूहको परमाणु बमका निशाना बना रहा है, शीघ्र दूर हो जाये । मैत्री भावनाका प्रचार, अहकार और ममताका त्याग इस मन्त्र द्वारा ही हो सकता है, अतः विश्वके प्राणियोके लिए बिना किसी भेद-भावके यह महामन्त्र शान्ति और सुखदायक है। इसमे किसी मत, सम्प्रदाय या धर्मकी बात नही है। जो भी आत्मवादी हैं, उन सबके लिए यह मन्त्र उपादेय है । ___ मगलवाक्यो, मूलमन्त्रो और जीवन के व्यापक सत्योका सम्बन्ध सस्कृतिके साथ अनादि कालसे चला आ रहा है। सस्कृति मानव जीवनकी वह अवस्था जैन संस्कृति और है, जहाँ उसके प्राकृतिक राग-द्वेषोका परिमार्जन हो णमोकारमन्त्र जाता है । वास्तवमे सामाजिक और वैयक्तिक जीवन
- को आन्तरिक मूल प्रवृत्तियोका समन्वय ही संस्कृति है। संस्कृतिको प्राप्त करनेके लिए जीवनके अन्तस्तलमे प्रवेश करना पडता है। स्थूल शरीरके आवरणके पीछे जो आत्माका सच्चिदानन्द रूप छिपा है, संस्कृति उसे पहचाननेका प्रयत्न करती है। शरीरसे आत्माकी ओर, जड़से चैतन्यकी ओर, रूपसे भावकी ओर बढ़ना ही संस्कृतिका ध्येय है । यो तो सस्कृतिका व्यक्तरूप सभ्यता है, जिसमे आचार-विचार, विश्वास-परम्पराएं, शिल्प-कौशल आदि शामिल हैं। जैन सस्कृतिका तात्पर्य है कि आत्माके रत्नत्रय गुणको उत्पन्न कर बाह्य