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मंगलमन्त्र णमोकार - एक अनुचिन्तन १८९ रूपस्थ ध्यानके अन्तर रूपातीत ध्यान किया और कर्मों का नाश कर मोक्ष लाभ किया। अत इस समय सभी प्रकारके उपसर्गोको जीतना परम आवश्यक है । णमोकारमन्त्र ही मेरे लिए शरण है ।
अग्नि उत्तरोत्तर बढ रही थी। जिनपालितका सारा शरीर भस्म हो रहा था, पर वह णमोकारमन्त्रकी साधनामे लीन थे । परिणाम और विशुद्ध हुए और णमोकार मन्त्र के प्रभावसे श्मशान-भूमिके रक्षक देवने प्रकट हो उपसर्ग दूर किया तथा मुनिराजके चरण-मलोकी पूजा की। इस प्रकार णमोकार मन्त्रकी साधनासे जिनपालित मुनिने अपूर्व मात्मसिद्धि प्राप्त । की
इस ग्रन्थकी तेरहवी कथामे आया है कि एक दिन द्रोणाचार्य अपने शिष्योसहित मालवदेश पहुंचे, यहांका राजा सिंहसेन था। इसकी स्त्रीका 'नाम चन्द्रलेखा था। चन्द्रलेखा अपनी सखियोके साथ सहस्रकुट चैत्यालयका दर्शन कर लौट रही थी। इतनेमे एक मदोन्मत्त हाथी चिघाडता हुआ और मार्गमे मिलनेवालोको रौंदता हुमा चन्द्रलेखाके निकट आया । चारो ओर हाहाकार मच गया, चन्द्रलेखाकी सखियाँ तो इधर-उधर भाग गयी, किन्तु वह अपने स्थानपर ही घबराकर गिर गयी। उसने उपसर्गके दूर होने तक सन्यास ले लिया और णमोकारमन्त्रके ध्यानमे लीन हो गयी। हाथी चन्द्रलेखाको पैरोके नीचे कुचलनेवाला ही था, सभी लोग किनारेपर खडे इस दयनीय दृश्यको देख रहे थे । द्रोणाचार्यके शिष्य भी इस अप्रत्याशित घटनाको देखकर घबरा गये। प्रमातिकुमारको चन्द्रलेखापर दया मायी, अतः वह हाथीको पकडनेके लिए दौडा । अपने अपूर्व वलसे तथा चन्द्रलेखाके णमोकारमन्त्र के प्रभावसे उसने हाथीको पकड लिया, जिससे चन्द्रलेखाके प्राण बच गये। यह कुमारी णमोकारमन्त्रकी अत्यन्त भक्तिन बन गयी और सर्वथा इस मन्त्रका चिन्तन किया करती थी। चन्द्रलेखाका विवाह भी प्रमातिकुमारके साथ हो गया, क्योकि प्रमातिकुमारने ही स्वयवरमे चन्द्रवेध किया । प्रमातिकुमारके इस