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मंगलमन्त्र णमोकार : एक अनुचिन्तन १५९ लोए सन्धमाहूणं णमो आइग्यिाणं णमो उवज्झायाणं णमो अरिहंताण" यह मन्त्र; चतुर्थ पक्तिमे "णमो लोए सवसाहणं णमो सिद्धाणं णमो माइरियाणं णमो उवज्झायाणं णमो अरिहंताणे" यह मन्त्र, पचम पक्तिमे "णमो आइरियाणं णमो लोए सवसाहणं णमो सिद्धाणं णमो उवज्झायाणं णमो अरिहंताणं" यह मन्त्र, और षण्ठ पक्तिमे “णमो लोए सवसाहूणं णमो आइरियाणं णमो सिद्धाणं णमो उवज्झायाणं णमो अरिहनाणं" यह मन्त्रका रूप होता है। इस प्रकार १२० रूपान्तर णमोकार मन्त्रके होते हैं। ___णमोकार मन्त्रका उपर्युक्त विधिके उच्चारण तथा ध्यान करनेपर लक्ष्यको दृढता होती है तथा मन एकाग्र होता है, जिससे कर्मोकी असख्यातगुणी निर्जरा होती है । इन अकोंको क्रमबद्ध इसलिए नही रखा गया है कि क्रमबद्ध होनेमे मनको विचार करनेका अवसर कम मिलता है, फलत मन संसारतन्त्रमे पडकर धर्मकी जगह मार-धाड कर बैठता है । आनुपूर्वी क्रमसे मन्त्रका स्मरण और मनन करनेसे आत्मिक शान्ति मिलती है। जो गृहस्थ व्रतोपवास करके धर्मव्यानपूर्वक अपना दिन व्यतीत करना चाहता है, वह दिन-भर पूजा तो कर नहीं सकता। हाँ, स्वाध्याय अवश्य अधिक देर तक कर सकता है। अतः व्रती श्रावकको उपर्युक्त विघिसे इस मन्त्रका जाप कर मन पवित्र करना चाहिए। जिसे केवल एक माला फेरनी हो, उसे तो सीधे रूपमें ही णमोकार मन्त्रका जाप करना चाहिए । पर जिस गृहस्थको मनको एकाग्र करना हो, उसे उपर्युक्त क्रमसे जाप करनेसे अधिक शान्ति मिलती है । जो व्यक्ति स्नानादि क्रियाओसे पवित्र होकर श्वेत वस्त्र पहनकर कुशासनपर बैठ उपर्युक्त विधिसे इस मन्त्रका १०८ वार स्मरण करता है अर्थात् १२०x१०८ वार उपाशु जाप - वाहरी-भीतरी प्रयास तो दिखलाई पडे, पर कण्ठसे गन्दोच्चारण न हो, कण्ठमे ही शब्द अन्तर्जल्प करते रहे, करे तो वह कठिन कार्यको सरलतापूर्वक सिद्ध कर लेता है । लौकिक सभी प्रकारकी मन.कामनाएं उक्त प्रकारसे जाप