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मगलमन्त्र णमोकार : एक अनुचिन्तन १५१ इस शंफाका उत्तर यह है कि किसी फलको प्राप्ति करनेके लिए गृहस्थको भगसख्या-द्वारा णमोकारमन्त्रके व्यानकी आवश्यकता नहीं। जबतक गृहस्थ अपरिग्रही नहीं बना है, घरमें रहकर ही साधना करना चाहता है, तबतक उसे उक्त क्रमसे ध्यान नही करना चाहिए। अत जिस गृहस्थ व्यक्तिका मन संसारके कार्योंमें आसक्त है, वह इस भगसख्या-द्वारा मनको स्थिर नहीं कर सकता है। त्रिगुप्तियोका पालन करना जिसने आरम्भ कर दिया है, ऐसा दिगम्बर, अपरिग्रही साधु अपने मनको एकाग्र करनेके लिए उक्त क्रम-द्वारा ध्यान करता है । मनको स्थिर करनेके लिए क्रम-व्यतिक्रम रूपसे ध्यान करनेको आवश्यकता पडती है । अतः गृहस्यको उक्त प्रयोगको प्रारम्भिक अवस्थामें आवश्यकता नही है। हाँ, ऐसा व्रती श्रावक, जो प्रतिमा योग धारण करता है, वह इस विधिसे णमोकार मन्त्रका ध्यान करनेका अधिकारी है । अतएव ध्यान करते समय अपना पद, अपनी शक्ति और अपने परिणामोका विचार कर ही आगे बढना चाहिए।
प्रस्तार--आनुपूर्वी और अनानुपूर्वीके अगोका विस्तार करना प्रस्तार है । अथवा लोम-विलोम क्रमसे आनुपूर्वीवी सख्याको निकालना प्रस्तार है । णमोकाग्मन्त्रके पांच पदोकी भगसख्या १२० आयी है, इसकी प्रस्तार-पक्तियां भी १२० होती हैं। इन प्रस्तार-पक्तियोमें मनको स्थिर किया जाता है। आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्तीने गोम्मटसार जीवकाण्डमे प्रमादका प्रस्तार निकाला है। इसी क्रमसे णमोकार मन्त्रके पदोका भी प्रस्तार निकालना है। गाथा सूत्र निम्न प्रकार है -
पढमं पमदपमाणं कमेण णिक्खिविय उवरिमाण च । पिंडं पछि एक्के मिक्खित्ते होदि पत्यारो ॥३७॥ णिक्खित्तु विदियमत्त पढमं तस्सुवरि विदियमेक्केक्कं । पिंटं पडि णिक्खेओ एवं सव्वत्यकायन्वो ॥३८।। अर्थात् -- गच्छ प्रमाण पद सख्याका विरलन करके उसके एक एक रूपके प्रति उसके पिण्डका निक्षेपण करने पर प्रस्तार होता है। अथवा