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मंगलमन्त्र णमोकार : एक अनुचिन्तन
एवं पुण्य-पापका निरूपण किया जाये, उसे द्रव्यानुयोग कहते हैं । इस मनुयोगकी दृष्टिमे णमोकार महामन्त्रको विशेष महत्ता है । णमोकार स्वय द्रव्यानुयोग और द्रव्य है, शब्दोंकी दृष्टिसे पुद्गल द्रव्य है और अर्थकी दृष्टिसे शुद्धात्माओका वर्णन करनेके कारण णमोकार मन्त्र जीवद्रव्य है । सम्यक्त्वकी प्राप्तिका यह बहुत वडा साधन है । द्रव्योके विवेचनसे प्रतीत होता है कि णमोकार मन्त्रका आत्मद्रव्यके साथ निकटतम सम्बन्ध है तथा इसके द्वारा कल्याणका मार्ग किस प्रकार प्राप्त किया जा सकता है । इस मन्त्रमे द्रव्य, तत्त्व, अस्तिकाय आदिका निर्देश विद्यमान है ।
जीव आत्मा स्वतन्त्र द्रव्य है, अनन्त ज्ञानदर्शनवाला, अमूर्तिक, चैतन्य, ज्ञानादिपर्यायोका कर्ता, कर्मफलभोक्ता और स्वयं प्रभु है । कुन्दकुन्दाचार्यने बतलाया है कि - " जिसमे रूप, रस, गन्ध न हो तथा इन गुणोके न रहनेसे जो अव्यक्त है, शब्दरूप भी नही है, किसी भौतिक चिह्नसे भी जिसे कोई नही जान सकता, जिसका न कोई निर्दिष्ट आकार है, उस चैतन्य गुणविशिष्ट द्रव्यको जीव कहते हैं ।" व्यवहार नयसे जो इन्द्रिय, बल, आयु और श्वासोच्छ्वास इन चार प्राणो द्वारा जीता है, पहले जिया था और मागे जीवित रहेगा, उसे जीवद्रव्य तथा निश्चय नयकी अपेक्षा से जिसमे चेतना पायी जाये, उसे जीवद्रव्य कहते हैं। णमोकार मन्त्र मे वर्णित मात्माओंमे उपर्युक्त निश्चय और व्यवहार दोनों ही लक्षण पाये जाते हैं । निश्चय नय द्वारा वर्णित शुद्धात्मा अरिहन्त और सिद्धकी है । वे दोनो चैतन्यरूप हैं । ज्ञानादि पर्यायोंके कर्ता और उनके भोक्ता हैं । आचार्य, उपाध्याय और साधू परमेष्ठीको आत्माओमे व्यवहार- नयका लक्षण भी घटित होता है ।
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पुद्गल - जिसमे रूप, रम, गन्ध और स्पर्शं पाये जायें उसे पुद्गल कहते है | इसके दो भेद हैं - अणु और स्कन्ध । अन्य प्रकारमे पुद्गल के तेईस भेद माने गये हैं, जिनमे आहारवर्गणा, तैजसवर्गणा, भाषावगंणा,