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मंगलमन्त्र णमोकार - एक अनुचिन्तन
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णमोकार मन्त्रका बार-बार स्मरण, चिन्तन करनेसे मस्तिष्कमें स्मृतिनिह्न ( Memory Trace) बन जाते हैं, जिससे इस मन्त्रको धारणा ( Retaining ) हो जानेसे व्यक्ति अपने मनको आत्मचिन्तनमें लगा सकता है । अभिरुचि, अर्थ, अभ्यास, अभिप्राय, जिज्ञासा और मनोवृत्तिके कारण ध्यानमें मजबूती आती है जब ध्येयके प्रति अभिरुचि उत्पन्न हो जाती है तथा ध्येयका अर्थ अवगत हो जाता है और उस अर्थको बार-बार हृदयगम करने की जिज्ञासा और मनोवृत्ति बन जाती है, तव ध्यानकी क्रिया पूर्णताको प्राप्त हो जाती है । अतएव योग-मार्गके द्वारा णमोकार मन्त्र की साधनायें सहायता प्राप्त होती है। इस मार्गकी अनभिज्ञतामें व्यक्तिको ध्येय वस्तुके प्रति अभिरुचि, अर्थ, अभ्यास आदिका आविर्भाव नहीं हो पाता है । अत णमोकार मन्त्रकी साधना योग द्वारा करना चाहिए |
आगम साहित्यको श्रुतज्ञान कहा जाता है । णमोकार मन्त्रमें समस्त श्रुतज्ञान है तथा यह समस्त आगमका सार है । दिगम्बर, श्वेताम्बर और स्थानकवासी इन तीनो ही सम्प्रदायके आगममे णमोकार महामन्त्रके सम्बन्धमें बहुत कुछ पाया जाता है | आचाराग, सूत्रकृताग, स्थानाग मादि नाम द्वादशागके तीनो ही सम्प्रदायमें एक है । दिगम्बर सम्प्रदाय में १४ अग बाह्य तथा ४ अनुयोग प्रमाणभूत, श्वेताम्बर सम्प्रदाय में ३४ अग बाह्य - १२ उपाग, १० प्रकीर्णक, ६ छेदसूत्र, ४ मूलसूत्र और दो चूलिका सूत्र प्रमाणभूत एवं स्थानकवासी सम्प्रदाय मे २१ अग बाह्य, १२ उपाग ४ छेदसूत्र, ४, मूलसूत्र मोर १ आवश्यक प्रमाणभूत माने गये हैं । इन सभी आगम ग्रन्थोंमें णमोकारका व्याख्यान, उत्पत्ति, निक्षेप, पद, पदार्थ, प्ररूपणा, वस्तु, आक्षेप, प्रसिद्धि, क्रम, प्रयोजन और फल इन दृष्टिकोणोंसे किया गया है ।
भागम- साहित्य और णमोकार मन्त्र
उत्पत्ति-द्वार नयोका अवलम्बन लेकर णमोकार मन्त्रकी उत्पत्ति मोर अनुत्पत्ति - नित्यानित्यत्वका विस्तारसे विचार किया गया है । क्योकि